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इटावा
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बिना ही आत्माको सर्वत्र मोक्ष हो जाना चाहिये क्योंकि मोक्षका उपादान आत्मा तो सर्वत्र विद्यमान है । यदि मनुष्य पर्यायाविष्ट आत्मा ही मोक्षका उपादान है तो मनुष्य रूप निमित्तकी उपेक्षा कहाँ रही । अतः अनेकान्त दृष्टिसे पदार्थका विवेचन हो तो उत्तम है । कानपुरसे भी वहुत लोग आये और आग्रह करने लगे कि कानपुर चलिये परन्तु मै चल सकूँ इसके योग्य मेरा शरीर नहीं
त मैंने जानेसे इनकार कर दिया। मेरे मनमें तो अटल श्रद्धा है कि शान्तिका मार्ग न तो पुस्तकोंमे है, न तीर्थ यात्रादिमें है, न सत्समागमादिमे हैं र न केवल दिखावाके योग निरोधमे है । किन्तु कपाय निग्रह पूर्वक सर्व अवस्थामे है। श्रद्धाकी यह शक्ति है कि उसके साथ ज्ञान सम्यग्ज्ञान हो जाता है और स्वानुभावात्मक निजस्वरूत्रमे प्रवृत्ति हो जाती है | गिरिडीहसे श्रीयुत कालूरामजी और श्री रामचन्द्रजी बाबू भी आये । आप दोनों ही योग्य पुरुष हैं आपका अभिप्राय है कि अब मैं श्री पार्श्वप्रभुके चरण कमलों में रहकर अपनी अन्तिम अवस्था शान्तिसे यापन करूँ। मेरी अवस्था इस समय ७६ वर्षकी हो गई है, शरीर दिन प्रतिदिन शिथिल होता जाता है, स्मरण शक्ति घटती जाती है केवल अन्तरङ्गमे धर्मका श्रद्धान दृढ़तम है । किन्तु सहकारी कारणका सद्भाव भी आवश्यक हैं । सेटी चम्पालालजी गयावालोंने भी यही भाव प्रकट किया परन्तु इच्छा रहते हुए भी मैं शरीरकी अवस्था पर दृष्टिपात कर लम्बा मार्ग तय करनेके लिए समक्ष नहीं हो सका ।
लोग बात तो बहुत करते हैं परन्तु कर्तव्यपथमे नहीं लाते । कर्तव्यपथमे लाना बहुत ही कठिन है । उपदेश देना सरल है परन्तु स्वयं उसपर आरूढ़ होना दुष्कर है। मैंने यही निश्चय किया कि आत्माकी परिणति जानने देखनेकी है अत तुम ज्ञाता दृष्टा ही रहो पदार्थमें जैसा परिणमन होना है हो उसमे इष्टानिष्ट कल्पना