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मेरी जीवन गाथा
परन्तु अब मालिकके बिना शून्य हो रही है । ऋषिगणों के योग्य है परन्तु इस कालमे वे महात्मा हैं नहीं । यहाँ से ६ मील चलकर बामौरा आ गये और वामौरा से ४ मील चलकर नूरावाद आ गये । यहाँ पर भी आलीशान कोठी थी, उसी मे ठहर गये ।
अगहन वदी १२ संवत् २००५ को मोरेनाके अलमे पहुॅचे। पहुँचते ही एक दम स्वर्गीय पं० गोपालदास जी का स्मरण आ गया । यह वही महापुरुप हैं जिनके त्रांशिक विभवसे आज जैन जनता मे जैन सिद्धान्तका विकास दृश्य हो रहा है । जब मोरेन के समीप पहुॅचे तव श्रीमान् पं० मक्खनलाल जी साहव जो कि जैन सिद्धान्त विद्यालयके प्रधान हैं छात्रवर्गके साथ आये । आपने बहुत ही प्रेमसे नगरमे प्रवेश कराया और सिद्धान्त विद्यालयके भवनमें ठहराया । सुख पूर्वक रात्रि बीत गई । प्रातःकाल श्री जिनेद्र भगवान के दर्शन करनेके लिये जैन मन्दिरमे गये । दर्शन कर बहुत ही विशुद्धता हुई । इतने मे पं० मक्खनलाल जी आ गये और कहने लगे कि अभिषेक देखने चलिये । हम लोग पण्डित जी के साथ विद्यालयके भवनके ऊपर जहाँ जिन चैत्यालय था गये । वहाँ पर एक प्रतिविम्बको चौकी के ऊपर विराजमान किया और फिर पण्डित जी ने पाठ प्रारम्भ किया । पञ्चामृताभिषेक किया । यह विलक्षणता यहाँ ही देखनेमे आई कि जलाभिषेक के साथ-साथ भगवान्के शिर ऊपर पुष्पोंका भी अभिषेक कराया गया । पुष्पोंका शोधन प्रायः नहीं देखनेमे आया । हमने पण्डित जीसे कुछ नहीं कहा । उनकी जो इच्छा थी वह उन्होंने किया । अनन्तर नीचे प्रवचन हुआ । यहाँकी जनताका बहुभाग इस पूजन प्रक्रियाको नहीं चाहता यह बात प्रसन वश लिख दी ।
प्रवचनके अनन्तर जब चर्या के लिये निकले तब पण्डित जीके घर पर भोजन हुआ । पण्डित जी ने बहुत हर्पके साथ आतिथ्य