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मुरार से आगरा स सत्यविद्यातपसा प्रणायक समग्रधीरुग्रकुलाम्बराशुमान् । मया सदा पाश्वजिनः प्रणम्यते विलीनमिथ्यापथदृष्टिविभ्रमः॥
इसी ग्वालियर मे भट्टारक जी का मन्दिर है। मन्दिरमे प्राचीन शास्त्र भण्डार है परन्तु जो अधिकारी भट्टारक जी का शिप्य है वह किसीको पुस्तक नहीं दिखाता तथा मनमानी गाली देता है। इसका मूल कारण साक्षर नहीं होना है। पासमे जो कुछ द्रव्य है उसीसे निर्वाह करता है। अव जैन-जनता भी साक्षरविवेकवती हो गई है। वह अब अनक्षरवेपियोंका आदर नहीं करती। हमने बहुत प्रयास किया परन्तु अन्तमे निराश आना पड़ा। हृदयमे कुछ दुःख भी हुआ परन्तु मनमें यह विचार आने से वह दूर हो गया कि संसारमे मनुष्योंकी प्रवृत्ति स्वेच्छानुसार होती है और वे अन्यको अपने रूप परिणमाया चाहते हैं जब कि वे परिणमते नहीं। इस दशामें महा दुखके पात्र होते हैं। मनुष्य यदि यह मानना छोड़ देवे कि पदार्थोंका परिणमन हम अपने अनुकूल कर सकते हैं तो दुःखी होनकी कुछ भी बात न रहे। अस्तु । ___ अगहन वदी संवत् २००५ को एक वजे ग्वालियरसे चलकर ४ मील पर आंगले साहवकी कोठीसे ठहर गये । कोठी राजमहलके समान जान पड़ती है। यहाँ धर्मध्यानके योग्य निर्जन स्थान बहुत हैं। जल यहाँ का अत्यन्त मधुर है, वायु स्वच्छ है तथा बाह्यमे त्रस जीवोंकी संख्या विपुल नहीं है। मकानमें ऋतु के अनुकूल सब सुविधा है। जब वनी होगी तब उसका स्वरूप अति निर्मल होगा