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मेरी जीवन गाथा
का अधिकार नहीं । प्रत्येक मनुष्य यदि उस देवमे उसकी श्रद्धा है तो उसकी आराधना कर सकता है, केवल उच्चगोत्रवाले ही उसके आराधक हो सकते हैं यह नियम नहीं । आजकल उच्चवर्णवालोंने यह नियम वना रक्खा है कि ये हमारे ही भगवान हैं । उनकी जो मूर्ति हमने वना रक्खी है उसे अन्य विधर्मियोंको पूजनेका अधिकार नहीं है । तत्त्वसे विचारकर देखो, तुमने मूर्तिमे भगवान्की स्थापना ही तो की है। स्थापना २ प्रकारकी होती है-एक तदाकार और दूसरी अतदाकार । तदाकार स्थापनामें पञ्चकल्याणकी आवश्यकता होती है और अतदाकार स्थापनामें विशेप आडम्बरकी आवश्यकता नहीं। केवल विशुद्ध परिणामोंकी आवश्यकता है। मन ही में भगव नकी स्थापना कर प्रत्येक प्राणी पूजन कर सकता है । उस पूजाको आप नहीं रोक सकते। उससे भी मनुष्य लाभ उठा सकते हैं। अरहन्त नामका स्मरण प्राणीमात्र कर सकता है। उसमे आपके निषेध एक काममें न आवेगे, क्योंकि वर्णसमा. मनाय अनादिसिद्ध है और वह प्रत्येक मनुष्यके उपयोगमें आ सकता है। इसी तरह जैसे आपको श्रीतीर्थ करदेवकी मूर्ति बनानेका अधिकार है वैसे यदि अन्य भी बनावे और पूजे तो आप रोकनेवाले कौन ? हाँ, लोकमें जिन वस्तुओंपर जिनका अधिकार है वे उनकी कहलाती हैं। अन्य उसे विना स्वामीकी आज्ञाके उपयोगमें नहीं ला सकता । अथवा यह भी कोई नियम नहीं, क्योंकि संसारमे नीति प्रसिद्ध है 'वीरभोग्या वसुन्धरा ।' देखिये चक्रवर्ती जब उत्पन्न होते हैं तब क्या लाते हैं पर वे पटखण्डके राजा बन जाते हैं। इसी प्रकार जब उन्हे राज्यसे विरक्तता आती है तथा विरक्तताके आनेपर जव दिगम्बर पद धारण करते हैं तब चक्रादि शस्त्र स्वयमेव चले जाते हैं। उनके पुत्र सामान्य राजा रह जाते हैं, अतः यह कोई नियम नहीं कि जो वस्तु आज हमारी है वह कल भी हमारी ही रहे ।