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मेरी जीवन गाथा
में मुख्यता वाह वाहकी रहती है। मार्मिक सिद्धान्तका विवेचन नहीं होता। मनुष्योंका कल्याण, तत्त्व विवेकमूलक रागद्वप निवृत्तिमें ही होता है। केवल तत्त्व विवेकके परामर्शसे शान्तिका लाभ नहीं । एक दिन सेठके कूचामें वनारससे आगत पं० कैलाश चन्द्रजीका उत्तम व्याख्यान हुआ। पश्चात् हमने भी कुछ अस्पष्ट भापामे कहा। सावन सुदी पूर्णिमा रक्षाबन्धनके दिन श्री ब्र० निजानन्द (कर्मानन्द) की समारोहके साथ जुल्लक दीक्षा हुई। ७००० हजार मनुप्योंका समुदाय था। समारोहमे पं० मणिक चन्द्रजी न्यायाचार्य फिरोजाबाद, पं० कैलाशचन्द्रजी वनारस तथा पं० राजेन्द्रकुमारजीके भाषण हुए। श्रीनिजानन्दजी पहले आये समाजी थे, परन्तु बादमे आप जैन सिद्धान्तसे प्रभावित हो जैन हो गये । कुछ समय पहले आपने ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण की थी
और आज क्षुल्लक दीक्षा लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा धारण की। लोकैषणाकी चाह न हो तो आदमी अच्छा है-प्रभावक है ।
एक दिन वैजवाड़ाके मन्दिर भी गया। वहाँ प्रवचन हुआ। समुदाय अच्छा था, परन्तु वास्तविक लाभ कुछ नहीं। यथार्थम प्राणीमात्रका कल्याण उसीके आधीन है। जिस कालमे वह अपनी
ओर दृष्टिपात करता है उस कालमे अनायास बाह्य पदार्थास विरक्त हो कर आत्मकल्याणके मार्गमें लग जाता है। अतः सर्व विकल्पोंको त्याग कर आत्महित करना व्यर्थकी झंझटॉमे पडना अच्छा नहीं। एक दिन धीरजपहाड़ीके लोगोंने पहाड़ी पर ले जान की चेष्टा की। फल स्वरूप हमलोग ३ मीलका लम्बा मार्ग तयकर सदर पार पहाड़ी पर पहुँच गये। यहाँ पर हीरालाल हाईस्कूलम व्याख्यान हुआ। वहुत ही भीड़ थी, परन्तु प्रबन्ध अच्छा था। इसी प्रकार एक दिन बिन्टीगंजमे भी गये। वहाँ भी प्रवचन आर व्याख्यान सभाएँ हुई, परन्तु सार कुछ नहीं निकला । यदि प्रवचना