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मेरी जीवन गाथा
है । मन्दिरका प्राण विशाल और मनोरम है । इतना विशाल प्राङ्गण अन्य मन्दिरोंमे कम देखनेको मिलता है । जब दर्शक चौकमेसे मूलवेदीका निरीक्षण करता है, साथ ही वेदीके चारों ओर लगे हुए जंगलोंकी वारीक जालीकी कटाईका अवलोकन करता है तो आनन्दविभोर हो उठता है । जब वह वेदीकी वारीक कलात्मक पच्चीकारी वेदीके चारों ओर चारों दिशाओं में बने हुए सिंहके युगलों को तथा उनकी मूछोंके वारीक वालोंको देखता है तब उसे उस शिलीके चातुर्यपर आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता । उसके बाद जब दर्शक वेदीके ऊपरी भागमे वने हुए कमलका अवलोकन करता है जिसपर आदिनाथ भगवान्की सं० १६६४ की प्रतिष्ठित प्रशान्त मूर्ति विराजमान है । साथ ह जब उसे ज्ञान होता है कि जब मन्दिर बना था तब इस कमलकी लागत दश हजार रुपया थी और वेदीकी सवा लाख रुपया तब वह और भी अधिक आश्चर्यमे पड़ जाता है। यह वेदी मकरानेके सुन्दर सफेद संगमर्मर पाषाणसे बनाई गई है। इसमे कहीं कहीं तो पच्चीकारीका इतना वारीक काम है कि जो अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता । गर्भालयके चारों ओर दीवारोंपर सुवर्णाङ्कित अनेक ऐतिहासिक एवं पौराणिक भावोंको चित्रित करनेका प्रयत्न, किया गया है। जैसे गजकुमार मुनिका अग्नि उपसर्ग, सेठ सुदर्शनके शील प्रभावसे शूलीका सिंहासन होना, सीताका सतीत्व परिचय के लिये अग्निकुण्डमें प्रवेश करना, रावणका कैलाशगिरिको उठाना और वाली मुनिका तपश्चरण, भरत और बाहुबलीके दृष्टि, जल और मल्ल नामक तीन युद्ध, राजा मधुका वैराग्य, सनत्कुमार चक्रवर्ती की देवोंके द्वारा परीक्षा, अवन्तीसेठ सुकुमालका वैराग्य, मोर्यसम्राट् चन्द्रगुप्तका भद्रबाहु श्रुतकेत्रलीसे स्वप्नोंका फल पूछना, यादववंशी भगवान् नेमिनाथ और उनके चचेरे भाई श्रीकृष्णके वलकी परीक्षा, अकलंक