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दिल्लीका ऐतिहासिक महत्त्व और राजा हरसुखराय
भारतीय इतिहासमे दिल्लीका महत्त्वपूर्ण स्थान है, रहा है और आगे रहेगा। उसका प्राचीन नाम इन्द्रप्रस्थ है। यह वर्तमानमें भारतकी राजधानी है और पहले भी इसे राजधानी बननेका सौभाग्य प्राप्त रहा है। दिल्लीको उजाड़ने, पुनः बसाने और कत्ले श्राम करने कराने आदिके ऐसे भीपणतम दृश्य इतिहास प्रसिद्ध हैं कि जिनका स्मरण भी शरीरमे रोमाञ्च ला देता है। दिल्लीपर तुंवर ( तोमर ) चौहान, पठानो, मुगलों तथा अंग्रेजों आदिने शासन किया है। वर्तमानमे स्वतन्त्र भारतकी राजधानी होनेसे दिल्लीकी शोभा अनूठी है। यहाँकी जनसंख्या २२ लाखसे कम नहीं है जिसमें जैनियोंकी जनसंख्या पच्चीस हजारसे कम नहीं ज्ञात होती! रात्रिमे विजलीकी चमचमाहट और कारोकी दौड़ देख साधारण जनता विस्मित हो उठती है। दिल्लीमे प्राचीन समयसे ही जैनोंका गौरव रहा है । यहाँ अनेक जैन श्रीमन्त, राजमन्त्री तथा कोपाध्यक्ष हो गये हैं। जैन संस्कृतिके संरक्षक अनेक जैन मन्दिर समय-समय पर यहाँ वनते रहे हैं। वर्तमानमे जैनियोंके २६ मन्दिर और ४-५ चैत्यालय हैं। ३-४ मन्दिरोंमे अच्छा विशाल शास्त्रमण्डार भी है। वर्तमान मन्दिरोंमे चाँदनी चौककी नुक्कड़पर बना लाल मन्दिर सबसे प्राचीन है, क्योंकि उसका निर्माण शाहजहाँके राज्यकालमें हुआ था। दूसरा दर्शनीय ऐतिहासिक मन्दिर राजा हरसुखराय का है जो 'नया मन्दिर' के नामसे लोकमे ख्यात है। इस मन्दिरम पञ्चीकारीका बहुत बारीक और अनूठा काम है जो कि ताजमहलमें भी उपलब्ध नहीं होता।