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मेरी जीवन गाथा और वहाँसे ५३ मील चलकर नहरके ऊपर १ बंगला सरकारी था उसमें निवास किया । यहाँ पर लाला रघुवीरसिंहजी व श्री जैनेन्द्रकिशोरनी दिल्लीवालोके चौकामे भोजन किया। श्री ३० कृष्णाबाईजी भी आई थीं। इनकी त्यागचर्या बड़ी ही कठिन है। स्त्रीजाति स्वभावतः कष्टसहिष्ण होती है।
आषाढ़ सुदी४ सं० २००६ को वंगलासे ५३ मीलका मार्ग तय कर टीलाके वागमे निवास किया। यह बाग श्री लाला उलफतरायजी दिल्लीवालोका है। गर्मीके प्रकोपके कारण स्वाध्याय नहीं हुआ। वैसे उपयोगकी स्थिरताके लिये स्थान सुन्दर है, परन्तु वाह्य कारण कूटके अभावमे कुछ नहीं हुआ। मेरी अवस्था ७५ वर्षकी हो गई, परन्तु उसका लाभ न लिया और न लेने की चेष्टा है । इसका मूल कारण मोहकी प्रबलता है । जिसने मोहकी प्रभुता पर विजय नहीं पाई उसने मनुष्य जीवनका सार नहीं पाया । पञ्चमीको प्रातः टीलासे ५ मील चलकर शाहदरा आ गये। यहाँ पर ५० घर जैनोंके तथा १ मन्दिर है। स्थान भद्र है। जलवायु उत्तम है। हम लोग धर्मशालामें सानन्द ठहर गये । यहाँके लोगोंकी प्रवृत्ति ग्रामवासियोंके सहश है, परन्तु दिल्लीके समीपवर्ती होनेसे यहाँके मनुष्य प्रायः उसी विचारके हैं। यहाँ दिल्लीसे वहुत मनुष्य आये थे, किन्तु सवकी प्रवृत्ति वही है जो होना चाहिये। निवृत्तिमार्गकी ओर दृष्टि बहुत ही कम है। मुझे लगा कि कल्याणके अर्थ लोग इतस्ततः भ्रमण करते हैं। किन्तु कल्याणका मार्ग संसारमे कहीं भी नहीं। आभ्यन्तर आत्माकी निर्मल परिणतिमे ही है। शाहदरासे ३ मील चलकर राजकृष्णके वागमें ठहर गये। यहीं पर भोजन हुआ। दोपहरको १ मिनट भी विश्राम नहीं मिला, १ मनुष्यके वाद १ मनुष्यका आगमन बना रहा और संकोचवश मै बैठा रहा।