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दिल्लीकी ओर
६५ स्वेचराचारी हैं जो मनमे आता है वह करते हैं। आगमकी अवहेलनाभले ही हो जावे, परन्तु जो असत्कल्पना मनमे आ जावे उसकी सिद्धि होना ही चाहिये । मनुप्य आवेगमे आकर अनेक अनर्थ करता है । यद्यपि केशलुञ्च करना कोई धर्म नहीं। केश हैं, पासमे पैसा नहीं । यदि उन्हे रक्खा जावे तो कौन सँभाले, यूका आदि हो जावे, अत. हाथसे उपाड़ना ही धर्म है। उसे जनता वीतरागताका द्योतक समझती है तथा जय-जयकारके नारे लगाती है और उसीमे हमारे जो त्यागी हैं वे द्वादशानुप्रेक्षाका पाठ पढ़ते हैं तथा नाना नारे लगाते हैं। मेरी समझसे व्रतीको आगमकी अवहेलना 'करना उचित नहीं। बड़ौतमे ६ दिन लग गये। अष्टाह्निकाके पूर्व दिल्ली पहुंचना था, इसलिये वीचमे अधिक रुकना रुचिकर नहीं होता था।
आषाढ वदी ११ सं० २००६ को प्रातःकाल ५ बजे बड़ौतसे चलकर ७ वजे बड़ौली आये। यहाँ पर १ मन्दिर तथा १० घर जैनोंके हैं, साधारण स्थितिके हैं, सरल हैं। परिणामोंकी सरलता जो छोटे ग्रामवासियोंमें होती है वह बड़े ग्रामोंके मनुष्योंमे नहीं होती। बड़े ग्रामोंके मनुप्योंमे विषयकी लोलुपता अधिक रहती है, क्योंकि छोटे ग्रामोंकी अपेक्षा उनमे विषय सेवनकी सामग्री अधिक रहती है और यह जीव अनादिसे विषय लोलुप बन रहा है । इसी दिन मध्यान्हके बाद चलकर मसूरपुर आ गये। यहाँ १ मन्दिर और २० घर जैनियोंके हैं। मसूरपुरसे ६ मील वागपत आये। यहाँ पर २० घर जैनियोंके तथा १ मन्दिर है। १ हाईस्कूल भी है। मनुष्य सज्जन हैं, परन्तु यहाँ पर कोई समागम नहीं। इससे जैनत्वका विशेष परिचय नहीं। कहाँ तक लिखें ? न जाननेके कारण प्रायः जैनधर्मके मूल सिद्धान्तोंकी विरलता होती जाती है। लोगोंकी बुद्धिकी बलिहारी है कि वे स्वकीय द्रव्य