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दिल्लीकी ओर
४७ ही है, किन्तु जो भोजन प्रतिदिन करते थे उससे कुछ अल्प किया। लोग संसारमे शान्ति चाहते हैं, परन्तु संसारका स्वरूप ही अशान्तिका पुञ्ज है। उसमे शान्ति खोजना रम्भास्तम्भमे सार अन्वेपण करनेके सहश है। संसारके अभावमे शान्ति है। लौकिक मनुप्य स्थान विशेपको संसार और मोक्ष समझते हैं वह नहीं। संसार असंसार आत्मा की परिणति विशेप है। आत्मा की सकमे परिणति संसार है और निष्कर्म परिणति असंसार है-मोक्ष है। नवमीके दिन श्री शीतलप्रसादजी शाहपुरवालोंके यहाँ भोजन किया। प्रत्येक मनुष्यकी यह दृष्टि रहती है कि हमारे यहां ऐसा भोजन बने जो सर्वश्रेष्ठ हो तथा पात्र हमारी इच्छानुसार उतना भोजन कर लेवे । चाहे पात्रको लाभ हो चाहे अलाभ हो । भोजनकी इच्छाका ही नाम आहार है। आहार संज्ञाके कारण संसारमे महान् अनर्थ होते हैं । अनर्थकी जड़ भोजनकी लिप्सा है। अच्छे अच्छे महान पुरुष इसके वशीभूत हो कर जो जो क्रिया करते हैं वह किसीसे गुप्त नहीं। भोजनकी लालसा अच्छे अच्छे पुरुषोका तिरस्कार करनेमे कारण हो जाती है ।
एक दिन लोगोंने सभामें निर्णय किया कि लड़कीवालेसे रुपया नहीं लेना । समयकी बलवत्ता देखो कि लाग लडकीवालेसे ठहराव कर रुपया मॉगने लगे हैं। कितनी अकर्मण्यता लोगोंमें आ गई है और लोभकी कितनी सीमा बढ़ गई है ? वास्तवमे लोभ ही पापका मूल कारण है । बहुतसे मनुष्य लोभके वशीभूत हो कर नाना अनर्थ करते हैं। आज संसार दुखी है इसका लोभ ही मूल हेतु है। हजारों मनुष्यों के प्राण लोभके वशीभूत होनेसे चले गये। आज संसारमे जो संग्राम हो रहा है उसका कारण राज्यलिप्सा है। आज जितने यन्त्रोंका संचालन हो रहा है उसका अन्तरङ्ग कारण लोभ है। और यन्त्रोंमें जो असंख्य प्राणियोंका