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दिल्लीकी ओर वैशाख सुदी १५ सम्बत् २००६ को नानौतासे ३ मील चल कर यमुनाकी नहर पर आ गये। यहाँसे ४ मील चल कर तीतरों आये । यहीं जैनियोके १० घर है। मन्दिरमे प्रायः जैन लोग बहुत कम पाते हैं। हम जिस घर भोजनके लिये गये, पता चला कि उस घरसे कोई भी दशन करनेको नहीं जाता। यहाँ पर ३ बजे सभा हुई जिसमे पं० हुकमचन्द्रजी सलावावालोने मूर्तिपूजा विषयक व्याख्यान दिया। अगले दिन १३ बजे तीतरोंसे चलकर कचीगढ़ी आ गये । यहाँ ८ घर जैनियोंके हैं। १ मन्दिर है। यहाँ पर रामाभाई खतोलीके निवास करते हैं, सज्जन हैं, आँखसे नहीं दिखता, वृद्धावस्था है । यहाँके जैनी आपके साथ अच्छा सलूक करते हैं। मन्दिर स्वच्छ है । सव भाईयोंने पूजा करनेकी प्रतिज्ञा ली। अगले दिन ७ मील चलकर पक्कीगढ़ी आये । यहाँ १ मन्दिर है। १० घर जैनियोंके हैं जो सम्पन्न हैं। मिडिल स्कूलमें प्रवचन हुआ। जनता अच्छी थी। लाला जम्बूप्रसादजीके यहाँ भोजन हुआ। आपने ५१) स्याद्वाद विद्यालयको दिये। मध्यान्हके बाद क्षुल्लक चिदानन्दजीका उपदेश हुआ। आपको व्याख्यान देनेका वहुत शौक है। अगले दिन पक्कीगढ़ीसे ३ मील चलकर भैंसवाल आये । यहाँ ३ घर जैनोंके हैं। सर्व सम्पन्न हैं। यहाँ जाट लोगोंकी वस्ती है। ग्राममें ईख बहुत उत्पन्न होती है। इससे यहाँके कृषक सम्पन्न हैं। पैसाकी पुष्कलता सबके है, किन्तु वह दुरुपयोगमे जाता है। देहातोंमें धार्मिक विद्याके जाननेवाले नहीं और शहरोंमें ऐश आरामसे लोगोंको अवकाश नहीं । अव तो काम और अर्थ पुरुषार्थ ही मुख्य रह गये हैं।
यहाँसे ६ मील चलकर जेठ बदी ४ को शामली आ गये । यहाँ पर १०० घर जैनियोंके हैं। बड़ी भारी मण्डी है। आज कल इस नगरमे सट्टाकी प्रचुरता है। यहाँ २ मन्दिर हैं, किन्तु पूजन