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________________ श्रीकामर स दिनाँक - 5 मई आयोज राजक : श्री दिग. जै Param Pujya Kshullak Shri Dhyaansagar Ji Maharaj ka Photo प्रकाशकीय अध्यात्म-साधना के सूर्य परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज जब भोपाल की धरती को अपनी उज्ज्वल धवल किरणों से पवित्र करके भोपाल से मंगल विहार करके जा रहे थे ठीक उसी समय उन्हीं के परम प्रभावक शिष्य पूज्य क्षुल्लक 105 श्री ध्यानसागर जी महाराज ने भोपाल की धरती पर प्रवेश किया। उस समय वह लोकविश्रुत कथा चरितार्थ हुई कि "अस्ताचल की ओर जाते हुये सूर्य ने अंधेरे में घिरते जनमानस की ओर करुणा से देखा। तभी एक लघुकाय दीप ने विनम्र स्वर में निवेदन किया "हे प्रभु! मैं आपका ही अंशावतार हूँ, अतः आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि आपके पुनः पधारने तक में मोहान्धकार की निविड़ निशा में आपकी ही भांति बिना किसी भेद-भाव के भव्याभव्य सभी को सन्मार्ग दिखाने का प्रयास करूंगा।" विगत दस वर्षों से भोपाल को दि. जैन साधु-संघों की विहार-भूमि बनने का सौभाग्य मिलता रहा है। अप्रैल 2002 के अन्तिम सप्ताह में आचार्यश्री के विहार के पश्चात् भोपाल के सौभाग्य से पूज्य क्षुल्लकजी का आगमन हुआ। भोपाल में क्षुल्लकजी का तीसरा प्रवास होने के कारण भारी संख्या में उनके शिष्य मण्डली और अध्यात्मरसिक जन, जो पूर्व से ही उनके ज्ञान-गर्भीय, आकर्षक व्यक्तित्व और सरल सुबोध प्रवचनशैली से प्रभावित थे, उत्सुक और आशान्वित थे कि बड़ी सीमा तक उनके अमृत वचनों का लाभ हमें चातुर्मास तक मिलेगा । ग्रीष्मकालीन वाचना के लिये योगपूर्वक आत्मीय निवेदन करने पर पूज्यश्री ने "भक्तामर, जी" पर विशद व्याख्यान माला के रूप में हमें उपकृत करना स्वीकार कर लिया। जैनजगत में अनादिनिधन श्री णमोकार महामंत्र के पश्चात् मंत्रशक्ति से परिपूर्ण भक्तामर स्तोत्र सर्वाधिक लोकप्रिय अध्यात्म-साधना का अमोध उपाय माना जाता है। पूज्य श्री क्षुल्लक जी द्वारा आचार्य मानतुंग कृत संस्कृत भक्तामर स्तोत्र के सभी 48 काव्यों की विशद् व्याख्या, व्याकरणसम्मत शुद्ध उच्चारण, काव्यों की मंत्रशक्ति और
SR No.009939
Book TitleMantung Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar
PublisherSunil Jain
Publication Year2005
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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