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________________ (xiv) जिह्वा लगाकर किंचित् वायु के निष्कासनपूर्वक तोत्र तुति या पष्ट आदि का उच्चारण करें। 9. भक्तामर स्त्रोत्र बोलते समय भक्ताम्बर या भक्तामर तथा इस्तोत्र स्रोत्र स्त्रोत्र आदि अशुद्ध उच्चारण न करें। 10. शशिनाह्नि को शशिनाः + नि बोलें, न कि शशिनाहि या शशिनान्हि तथा वह्नि को वहनि न बोलकर वः नि बोलें। (पहले आधे ह का उच्चारण फिर नि का उच्चारण) अन्य उच्चारणगत समस्याओं का समाधान योग्य प्रशिक्षण द्वारा संभव है। यह स्तोत्र वसन्ततिलका नामक चतुर्दशाक्षरी छन्द में रचित है, जिसके तृतीय चरण में स्वरारोहणपूर्वक लयपरिवर्तन होता है। उचित मार्गदर्शन श्रेयस्कर होगा। प्रत्येक चरण में 7 लघु और 7 गुरु अक्षर हैं। भक्तामर मंत्र-शक्ति भक्तामर स्तोत्र केवल स्तोत्र ही नहीं अपितु मन्त्रशक्ति का निधान भी है। क्षु, मनोहर वर्णी जी का कथन है कि इसका प्रत्येक काव्य स्वयं एक स्वतंत्र मन्त्र है, क्योंकि म, न, त एवं र (मन्त्र) शब्द के 4 व्यंजन सभी पद्यों में हैं। तदनुसार इस स्तोत्र में 56 अक्षरों वाले 48 मन्त्र छिपे हैं। सर्वत्र अन्तरंग निमित्त निज-कर्म (पुण्य) है तथा बहिरंग निमित्त नोकर्म (मंत्र, औषधादि) है, अत: अन्यथा न लें। इन काव्यों का मन्त्रवत् विधिपूर्वक प्रात:काल जप करने पर निम्नलिखित फलोपलब्धियाँ होती हैंकाव्य क्र. कार्य काव्य क्र. कार्य सर्व-विघ्न-विनाशक मस्तक- पीड़ा नाशक सर्व-सिद्धि-दायक जलचर-भय-मोचक नेत्र-रोग-हारक विद्या-प्रसारक क्षुद्रोपद्रव निवारक एवं सप्त-भय-संहारक कूकर-विष-निवारक आकर्षण-कारक/ हस्ति-मद-भंजक/ वांछा-पूरक वांछित-रूप-दायक संपत्ति-दायक / देह-रक्षक आधि-व्याधि-नाशक सम्मान-सौभाग्य-वर्धक सर्व-विजय-दायक सर्व-रोग-निरोधक शत्रु-सैन्य-स्तंभक उच्चाटनादिरोधक संतान-संपत्ति-सौभाग्य-दायक सर्वसुख, सौभाग्य साधक भूत पिशाच बाधा निरोधक प्रेत बाधा नाशक शिरो रोग नाशक दृष्टि विष निवारक आधा सीसी पीड़ा निवारक शत्रु निवारक सर्व मनोरथ पूरक नेत्र पीड़ा निवारक शत्रु स्तम्भन कारक राज सम्मान दायक संग्रहणी निवारक सर्व ज्वर संहारक गर्भ संरक्षक ईति भीति निवारक लक्ष्मी प्रदायक दुष्टता प्रतिरोधक हस्ति मद भंजक/संपत्ति वर्धक सिंह शक्ति निवारक सर्वानि शामक भुजंग भय नाशक युद्ध भय निवारक सर्व शान्ति दायक सर्वापत्ति निवारक जलोदरादि रोग नाशक/ विपत्ति निवारक 46. बन्धन मुक्ति कारक अस्त्र शस्त्रादि निरोधक 48. सर्वसिद्धि दायक कुछ काव्यों की मन्त्रशक्तियाँ मङ्गलवाणी पृ. 280/282 पर इस प्रकार दी गयी हैं भक्तामर का दूसरा काव्य लक्ष्मी-प्राप्ति और शत्रु-विजय के लिये है। इसी प्रकार 6. बुद्धिप्रकाश के लिये, 10. वचन-सिद्धि के लिये, 11, खोई वस्तु पुनः प्राप्ति के लिये, 15. ब्रह्मचर्य, स्वप्रदोष की निवृत्ति, राज दरबार में सम्मान प्रतिष्ठा और लक्ष्मी की वृद्धि के लिये, 19. दूसरों के द्वारा किये हुए जादू, भूत-प्रेत का असर दूर हो, रोजगार अच्छा लगे, भाग्य हीन पुरुष भी भूखा न रहे, 20. पुत्र की प्राप्ति हो, 21. स्वजन और परजन सवका प्रेम हो, 28. सब प्रकार की मन की शुभ इच्छापूर्ण हो, 36, सम्पत्ति का लाभ हो, 45. सब प्रकार का भय और उपसर्ग दूर हो, तेज प्रताप प्रकट हो, सब प्रकार के रोगों की शांति हो। 46. राजा का भय दूर हो, जेलखाने से छूटे। उपर्युक्त काव्यों की एक माला का जाप प्रतिदिन प्रात:काल में करना चाहिये। भक्तामर स्तोत्र महाप्रभावशाली है एवं सर्व प्रकार आनंद मंगलकारी है। (48 काव्यों की मन्त्र-शक्तियाँ पूर्व प्रकाशित कृतियों से संकलित की गयी हैं।) -क्षुलक ध्यानसागर
SR No.009939
Book TitleMantung Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar
PublisherSunil Jain
Publication Year2005
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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