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( २३ ) कर दिया है। एक साधना सम्पन्न संस्थान अनेक विद्वानों के सहयोग से सम्भवतया पांच-सात वर्षों में जिस कार्य को सम्पन्न कर पाता, उस विश्वकोश जैसे अनुपम ग्रन्थ को आपने अकेले ही पूरा करके साहित्य-जगत को चमत्कृत कर दिया है । ६००० शब्दों के अन्तर्गत २१००० विषयों के सांगोपांग ज्ञानको आपने शीर्षकों, उपशीर्षकों, मानचित्रों और सारणियों द्वारा स्पष्ट करने की विधि को अपनाकर ज्ञान-कोश की रचना में नया मानदण्ड स्थापित किया है।
इस चमत्कारका सबसे अधिक मार्मिक पक्ष यह है कि युवावस्था में ही क्षय रोग से आक्रान्त होने के कारण चार ऑपरेशनों की श्रृंखला में आपका एक फेफड़ा बन्द कर दिया गया था। अतः आप एक ही फेफड़े से श्वास-निश्वास की क्रिया साधते हैं।
अद्भुत दृष्टि सम्पन्नता और अथक परिश्रम द्वारा आपने भगवान् महावीर के पच्चीस सौवें परिनिर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में जैन आगमोंसे जिस 'जिण धम्म' (समण सुत्तं) संकलन का प्रारूप तैयार किया है उससे भारतका धार्मिक जगत सदा उपकृत रहेगा । यह आपकी नवीनतम उपलब्धि है।
आपकी इन कृतियों के कारण जैन ज्ञानके साधक और विद्वसमाज आपके चिरऋणी रहेंगे। इस समारोहमें उपस्थित विद्वान इस भावनाके प्रतीक हैं।
आपके मनीषी पिता श्री स्वर्गीय बाबू जयभगवान जी वकील और धर्मपरायण पितृतुल्य श्री रूपचन्दजी गार्गीय तथा परम सन्त 'श्रद्धय गणेश प्रसाद जी वर्णी' का हम इस अवसर पर पुण्यस्मरण करते हैं, जिनकी छत्रछाया में आपके संस्कार पल्लवित हुये और जिनकी कृपा से आपका ज्ञान और आपका संयम समृद्ध हुग्रा । श्री जयभगवान् जी वकील उदार दृष्टि-सम्पन्न, समाजसुधारक और ज्ञान गुणसम्पन्न थे। श्रद्धय गणेश प्रसाद जी वर्णी के पुण्यप्रयत्नों के कारण आज समाज में ज्ञान की ज्योति फैली हुई है । ज्ञान के साथ तप, साधना और त्याग का मार्ग उन्होंने प्रदीप्त किया है ।