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________________ भगवई सुत्त अणंताओ संजूहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं भंजमाणे विहरइ, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥१॥ से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजहे देवे उववज्जइ | से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव विहरित्ता ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव चइत्ता, दोच्चे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥२॥ से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता हेट्ठिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता तच्चे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥३॥ से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता चउत्थे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥४॥ से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता पंचमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ॥५॥ से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता हिडिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता छट्टे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥६॥ से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता बंभलोगे णामं से कप्पे पण्णत्ते, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे, जहा ठाणपए जाव पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा- असोगवडेंसए जाव पडिरूवा | से णं तत्थ देवे उववज्जइ | से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्वाइं भोग जाव चइत्ता सत्तमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाइ ॥७॥ से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धद्वमाणं जाव वीइक्कंताणं सुकुमाल- भद्दलए मिउकुंडलकुंचियकेसए मट्ठगंडतलकण्णपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयाइ। से णं अहं कासवा! तएणं अहं आउसो कासवा ! कोमारियपव्वज्जाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तं जहा- एणेज्जस्स, मल्लरामस्स, मंडियस्स, रोहस्स, भारद्दाइस्स, अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स | तत्थ णं जे से पढमे पउट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया मंडिकुच्छिंसि चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता एणेज्जगस्स सरीरगं सित्ता बावीसं वासाइं पढमं पउपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से दोच्चे पउट्टपरिहारे- से णं उदंडपुरस्स णयरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयसि एणेज्जगस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता एकवीसं वासाइं दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि । 395
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
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