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कठोर वाणीसे हानि
विवरण - यदि राष्ट्रको पवित्र रखना हो तो उसका एकमात्र उपाय यह है कि राज्यसंस्थाको राष्ट्रीय पवित्र तपोभूमिका रूप देकर रखो । जनता राज्यसंस्थाके अनुकूल अपना चरित्र बनाती है । राज्यसंस्थाका स्वभाव हो राष्ट्रका स्वभाव बनजाता है ।
कामी लोग सूक्ष्म कामों में ध्यान नहीं दे सकते, उनका मन एकाग्र होना नहीं जानता। उन्हें सौंपे कार्यों में राज्यको हानि होती और सुफलकी संभाबनायें नष्ट हो जाती हैं ।
काम एष क्रोध रजोगुणसमुद्भवः r: 1 महाशना महापाप्मा विद्धयनमिह वैरिणम् ॥
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एष
( श्रीमद्भगवङ्गीता ) काम ही क्रोध है । काम ही किसीसे प्रतिबद्ध होनेपर क्रोध बनजाता हैं । यह रजोगुणसे उत्पन्न होता है । यह महाभोजी हे । कामका पेट सारा संसार पाकर भी नहीं भरता । यह महापापी है । यह अपने स्वार्थसे संसारभरका सर्वनाश करनेको प्रस्तुत होजाता है । यह यद्यपि ऊपर से देखने में भोगदायी मीठा मित्र और हितैषी लगता है, परन्तु तुम इसकी मित्रताके धोके में मत रहो। तुम इसे अपना शत्रु मानों और इससे बचकर रहो । कामेन रावणो नशे देवराजाऽपि गर्हितः ।' कामकी दासता से रावण वो अपनी जान से ही हाथ घोबैठा और इन्द्रने काम की दासता करके अपने पर अमिट कलंक लगा लिया ।
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( कठोर वाणांसे हानि )
अग्निदाहादपि विशिष्टं वाक्पारुय्यम् ॥ ७५ ॥
किसीको मर्मभेदी अरुन्तुद वाक्य कहना अग्निदाह से भी अधिक दुखदायी होता हूँ ।
विवरण- कठोर कर्कश अश्लील वाणी बोलना भी एक महा दुयेसन है । मनमें क्रोक्के उद्दीप्त होनेपर वाणा में पारुष्य आजाता है । मर्मभेदी पुरुष कर्कश कदम अश्लील वाणी दुष्ट मनमें से ही निकलती है ।