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इतिहास लेखकोंका उत्तरदायित्व
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इतिहास लेखकोंका उत्तरदायित्व प्रसन्नताकी बात है कि हमारे देशके कुछ इतिहास-संशोधक प्राचीन मिथ्या प्रचारोंके छिपाये अबतक प्रकाश में न आये हुए चाणक्य चन्द्रगुप्तसे सम्बन्ध रखनेवाले समुज्ज्वल चरित्रको प्रकाशमें लाये हैं । परन्तु हमारी दृष्टिमें उनकी इस साहित्यसेवामें कुछ संशोधनीय त्रुटि रह गई हैं। उनकी इस साहित्यसेवासे कुछ इने गिने साहित्यसेवी ही अनुगृहीत हो पाये हैं। इन लोगोंने इस युगलमहापुरुषों के चरित्रसंबन्धी गुप्त सत्योंका जो उद्घा. टन किया है उससे इन्होंने न तो इन दोनों महापुरुषोंपर ही कोई कृपा की है और न अबसे सवादो सहस्त्र वर्षपूर्ववाले भारतीय मनुष्य समाजको ही अनुगृहीत किया है। नवीन साहित्य की रचना केवल वर्तमान तथा भावी समाज कल्याणकी दृष्टिसे की जाती है। इसलिये इन लोगों के इतिहास लेखन नामक इस प्रयत्नका वर्तमान तथा भावी भारतका कल्याण करना ही एकमात्र उद्देश्य होना चाहिये ।
इतिहास संशोधक कहलाना मात्र लेखन-कलाकी सार्थकता नहीं है किन्तु साथ ही अपनी वर्तमान तथा भावी पीढीको राजनैतिक या चारित्रिक सत्परामर्श देकर अनुगृहीत करके धन्य होना ही प्रन्थ-लेखनकी सफलता है । स्वभावसे प्रश्न उत्पन्न होता है कि इन लोगोंकी इन महत्व. पूर्ण ऐतिहासिक खोजोसे वर्तमान या भावी भारतको कोई लाभ पहुंचाया नहीं ? यदि पहुंचाते तो किस दृष्टि से और नहीं पहुंचा तो उसका कारण इस इतिहास लेखनकी कौनसी त्रुटि हुई? इन सब बातोंकी मालोचना करना ही इतिहास संशोधकोंकी साहित्यसेवाका लक्ष्य होना चाहिये। इसलिये होना चाहिये कि इन दोनोंको लैखिक या मौखिक श्रद्धांजलि अर्पण कर देना ही हमारे इस अभागे देशके लिये पर्याप्त नहीं है। इन दोनों महापुरुषोंने समाजसेवाके जिस कामको जीवनका कम्य तथा उद्देश्य मानकर इस मुमूर्षु देशको संजीवनी सुधा पिलाई थी और इसका जीर्णोद्वार किया था, क्या हमारे देशके इतिहास शोधकोंकी साहित्यसेवा भारतवासियोंके