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________________ असत्यविरोधी वीरोंकी सहायता देनेके अपराध के प्रायश्चित्त के रूपमें उसकी माकस्मिक दरिद्रताको अपने कोषसे दूर करना पड़ता है । परन्तु राजशकि इस उत्तरदायित्वको तब ही पूरा कर सकती है जब वह प्रजाके धनका लूटमारके धनकी भांति अपव्यय न करती हो। राजशक्तिका कर्तव्य है कि प्रजासे प्राप्त राजकीय धन-भंडारको अनुचित अतिरिक वेतन या भंते आदि अपव्ययोंसे महाकृपणके तुल्य बचाकर पूर्ण बनाये रहे कि विपत्तिके दिनों में प्रजाके काम मा सके। जैसे विपत्ति के दिनों के लिये धन बचाकर रखना व्यक्तिका पारिवारिक कर्तव्य है इसी प्रकार राष्ट्र की विपत्ति के दिनोंके लिये राष्टकोश में धन बचाकर रखना राज्य संस्थाका राष्ट्रीय कर्तव्य है। राष्ट्र भी तो एक विराट परिवार हैं। मितव्ययिता ही परि. वारकी श्रेष्ठ अर्थनीति है। परिवार के लिये हितकर-नीति ही राष्ट्र के लिये भी हितकर हो सकती है । जैसे परिवार पति लोग धनका अपव्यय न करके बद्धमुष्टि रहने हैं इसी प्रकार राज्यसंचालक लोग प्रजाके धनको अपने भोगविलासमें अपव्यय न करके बद्धमुष्टि रहें । पाठान्तर - आपत्प्रतीकारार्थ धनमिष्यते। आपत्तियों के प्रतिकारके लिये धनसंग्रह अभीष्ट है । पाठान्तर- अत्रापदर्थ धनं रजेत् । संसारमें विपत्ति टालने के लिये धनसंचय करे । ( अस-यविरोधी वीरों की सहायता स्वहितकारी कर्तव्य ) साहसवतां प्रियं कर्तव्यम् ॥ ५३८ ॥ असत्यका विरोध करनका सत्साहस करनेवालोंके असत्य विरोध में सहयोगी बनो । विवरण- अपत्याविरोधियों के साहसमें सहयोग देने का साहस प्रदर्शन करो। सत्य या सम्मान -रक्षाके नामपर विपत्तिकी बाढको रोकने में छाती अढा देनेवाले तस्साहसी लोग समाज के प्राण होते हैं। समाजमें धमकी ३२ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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