SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९८ चाणक्यसूत्राणि रक्षा ऐसे ही लोगोंके द्वारा होती है। ऐसे लोगोंकी मास प्रवृत्तिको दानमानादिसे सम्मानित करना समाज तथा राज्यका स्वहितकारी कर्तव्य है। जो लोग सत्यके बलसे बलवान् होकर भौतिक शक्तिका घमंड करने. वाले माततायियों या शत्रुओंका विरोध करनेको भागे मा खडे होते हैं और दुःसाहसी शत्रुओं के दुःसाहसोंके विघ्न बन जाते हैं ऐसे साहसियों को सुख-सुविधा पहुँचाना, वे इस सेवायज्ञ में नष्ट हो जाये तो उनके निराश्रित पारिवारिकों का पालन-पोषण करना समाज या राज्यके विचारशील लोगोंका खोपकारक कर्तव्य है । साहसी लोगों की पूजा करना ही समाज-धर्म है। अपनेको सत्यकी शक्ति से अनन्त शक्तिमान मानकर असत्य का डटकर विरोध करना ही इस सूत्र के साहस शब्दका अर्थ है । सत्यकी सेवा करने में सम्पूर्ण संसारके विरोधी हो जानेपर भी उसका विरोध करके सत्यपर अकेले भी स्टे रहना साहस ' है । कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो असत्यकी दासतामें अपना जीवन संकट में डाल देते हैं । उनका असत्यकी दासता करते हुए जीवनको संकट में डालना साहस नहीं है । किन्तु दुःसाहस या उन्मत्तता है। ( कर्तव्य अभी करो) श्वः कार्यमद्य कुर्वीत ॥ ५३९॥ मनुष्य कलका काम अभी करे।। विवरण- मनुष्य कर्तव्य करने में क्षणभरकी भी देर न करे। वह माये कामको फिरके लिये न टाल कर उसे तत्काल करे । कर्तव्यको उसके उप. युक्त समयपर करें, क्योंकि वह उसी समयका कर्तव्य है । समयपर कर्तव्य न करना कतव्यभ्रष्टता है। इसलिये कम्यको तत्काल कर देने में ही मनुव्यका कल्याण है। आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः । क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ।। लेना, देना तथा करना सूझते ही न कर लिया जाय तो काल इन तीनों कामोंका रस चूस लेता है और फिर ये काम होनेसे सदाके लिये रह जाते है !
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy