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चाणक्यसूत्राणि
१-कर्मोंका भारम्भ और उनके उपाय- अपने देश में कहां खाई, दुर्ग, भवन, कुल्या, प्रपात, झील, विद्यालय, भातुरालय, पान्थशाला, सेनानिवेश मादि बनाने हैं ? और वे कैसे बनाने हैं ? उनके लिये क्या क्या प्रारम्भिक कार्यवाही करनी है ?
२- दूसरे राष्ट्रोंसे सन्धि, विग्रह आदि करने के लिये कहां किसे दूत बना कर भेजना है ? दुर्ग, पोत, कुल्या, बांध मादि निर्माणों के लिये निर्माणकुशल शिल्पी लोग कहांसे कैसे प्राप्त करने हैं ? लोहा लकी चूना पत्थर आदि निर्माणसामग्री कहांसे, कैसे लानी है ? देश विदेशोंसे समाचार लानेवाले दूत तथा सेनापति आदि महत्वपूर्ण पदोंपर किन किन पुरुषोंको नियुक्त करना है ? सोना, चांदी, धनधान्यादि कहांसे कैसे प्राप्त करने हैं ? किसे किस काम के लिये कितना धन, किस किस प्रकार कितने बारमें देना है ? इत्यादि।
३- कौन काम, किस स्थानपर, किस ऋतु और किल परिस्थिति में करना है ? कर्तव्यकी भौगोलिक स्थिति कैसी है ? वहां किस ऋतु और परिस्थि. तिमें काम ठीक होसकता है। देशमें सभिक्ष रखने और दर्भिक्ष हटाने के लिये क्या क्या उपाय करने हैं ? कर्म सदा ही देश, काल और विशेष परि. स्थितिकी अनुकूलता चाहा करता है।
४- अमुक बिगडे कामको कैसे सुधारना है ? राष्ट्रीय कार्योंकी विपत्तियां कैसे हटानी हैं ? अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषक, शलभ, टिड्डी, तोते, माका. मक राजा तथा माभ्यन्तर राष्ट्रकण्टकोंसे राष्ट्रको कैसे बचाना है ?
५- कौनसे कार्यकी कैसी स्थिति है ? कौनसे कामको कैसे वद्धि देनी है ? कौनसे कामको साम, दाम, दण्ड, भेद आदि किस किस उपायसे सिद्ध करना है ? __ ये मन्त्रके पांच अंग हैं । कार्य इन सबके पूर्णांग विचारसे ही सिद्ध होते हैं।
कर्मसे पूर्व ही कमोपयोगी समस्त चिन्तन पूर्ण होजाना चाहिये। कर्मके मध्यमें उसके सम्बन्धमें कुछ भी सोचना शेष न रहजाना चाहिये।