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मन्त्रीकी योग्यता
मन्त्ररक्षणे कार्यसिद्धिर्भवति ॥ २३ ॥ कार्यसंबन्धी हिताहितचिन्तारूपी मन्त्रको गुप्त रखनेसे ही कार्य सिद्ध होपाता है।
विवरण- कार्योंके उद्देश्य, उनके साधन, उनके स्थान, उनकी विधि गुप्त रखनेसे ही कार्य निर्विघ्न होते हैं । कार्यसिद्धिसे पहले उसका पता शत्रुओंको चल जानेपर उन्हें उसे व्यर्थ करनेका अवसर मिल जाता और कार्य सिद्ध होने से रह जाता है । मन्त्ररक्षाका सुदृढ प्रबन्ध न होनेपर मन्त्र. फूट जाता है। __ यदि कोई उत्तरदायित्ववाला मंत्री मन्त्रभेद कर दे तो " उच्छियेत् मन्त्रभेदी" इस कौटल्य के अनुसार उसे मरवा डालना चाहिये । बृहस्पतिने कहा है कि "मन्त्रमुलो विजयः" विजय अर्थात् सब कार्यों में सफलता मन्त्रोंसे ही मिलती है। मंत्रभेदसे राज्योंके योगक्षेम नष्ट होजाते हैं । मान्त्रियोंके भी कुछ मन्त्री होते हैं, तथा उनके भी कुछ श्रोता तथा मन्त्रणादाता होते हैं। यही परम्परा मन्त्रभेद किया करती है । इसलिये राजा जिस किसी मन्त्री से मंत्रणा न करके केवल प्रधानमन्त्रीसे करे और वह उसकी सुरक्षाका पूर्ण उत्तरदायी हो । उम प्रधानमन्त्रीको मावश्यकता प्रतीत हो तो वह अपने उस विषयके विशेषज्ञोंसे मन्त्रणा करके बातका ममे जान कर उसपर राजाके साथ विचार विमर्श करके अन्तिम निर्णयपर पहुंचे। पाठान्तर-मन्त्रसंवरणे कार्यसिद्धिर्भवति।
मन्त्रविसावी कार्य नाशयति ।। २४ ।। किसी भी प्रकारकी असावधानतास मन्त्रकी गोपनीयताको सुरक्षित न रख सकनेवाला कार्यको नष्ट भ्रष्ट कर डालता है।
विवरण-- असावधानता, मद, स्वप्नविप्रलाप, विषयकामना, गवे, गुप्तश्रोता, मन्त्रकाल में मूढ या अवोध समझकर न हटाया हुमा व्यक्ति