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चाणक्यसूत्राणि
सूत्रका रष्टिकोण यह है कि मनुष्यसमाजके शत्रुको दण्डित करने में भी न्यायसंगत समाजकल्याणकी दृष्टि रहनी चाहिये । क्योंकि अपराधियोंको रोककर समाजकल्याणको सुरक्षित रखना ही राष्ट्र तथा नागरिकों का कर्तव्य है। अपराधी लोगोंको दण्ड देने के लिये उन्हें अपराधी सिद्ध करना भी राष्ट्र और समाजका कर्तव्य है। शंकामात्र से किसीको दण्ड नहीं दिया जा सकता । अपराधी व्यक्तिको जीविकार्जनके अवैध उपायोंसे बलात् रोककर वैध जीविकाका अर्जनके लिये विवश करके रखना राष्ट्र तथा नागरिककोका कर्तव्य है । आततायी प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्यको दण्डभयसे ताडित भीत और त्रस्त करके उन्हें समाजका अकल्याण न करने देना राष्ट्रका कर्तव्य है।
( जीवनोद्योगोंकी शत्रुसे रक्षा ) ( अधिक सूत्र ) शत्रुभिरनभिपतनीया वृत्तिः ।। बुद्धिमानकी प्रवृत्तितक शत्रुका आक्रमण नहीं पहुंचना चाहिये। मनुष्यको अपने जीवनसाधनोंको शत्रुओंके आक्रमणोंसे सुरक्षित रखना चाहिये।
अप्रयत्नादेकं क्षेत्रम् ॥ ४२१ ॥ जहां जल सुलभ हो वही कृषियोग्य भूमि होती है। विवरण- जिस स्थानमें कृषिके लिये अनायास जल मिल सके वही स्थान कृषिके योग्य होता है । कृषिके ही नहीं निवासके योग्य भी वही स्थान माना जाता है जहां जल अनायास मिलता है । मरुभूमि कृषि तथा निवास दोनोंहीके अयोग्य मानी जाती है। नदी, समुद्र या सरोवरोंके पासवाली सिकताहीन समतल उर्वरभूमि ही कृषि तथा निवासके योग्य और स्वास्थ्यकर होती है। 'क्षीयते धान्यादिभिरिति क्षेत्रम्' जो भूमि धान्यादि उत्पन्न करके क्षीण शक्ति होती रहती तथा वारंवार खाद मांगती रहती है वह भूमि क्षेत्र या कृषिभूमि कहाती है। पाठान्तर- अप्रयत्नादेक क्षेत्रम् । साधारण प्रयत्नसे एक ही क्षेत्र अन्नकी उपज दे सकता है ।