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________________ देहकी विशालता जयका साधन नहीं ४१५ (क्षुद्र के भरोसे बलवान्से मत बिगाडो) एरण्डमवलम्ब्य कुंजरं न कोपयेत् ॥ ४५२ ।। सारशून्य अदृढ एरण्डका आश्रय लेकर महाकाय हाथीको कुपित न करे। विवरण- क्षुद्र सहारेके भरोसे बलवान से न लडे । क्षुद्र साधनसे बलवान्का ताडन निवर्तन, निग्रह या अवरोध संभव नहीं है किन्तु इससे अपना ही महाअनिष्ट हो सकता है। मनुष्य जैसा कार्य करना सोचे उप्सी प्रकारकी सामग्री भी तो संचित करे । लघु उपायसे गुरुकार्य न छेड बैठे। जैसे नखनिकृन्तनसे वृक्षच्छेद असंभव है इसी प्रकार लधु उपायसे गुरु. कार्यकी सिद्वि भसंभव है । वृक्षच्छेद कुठारसे ही संभव है । ' आ इरति वायुमिति एरण्डः ' जो वायुका विनाशक वृक्ष है वह एरण्ड कहाला है । एरण्ड तेल तथा मूलकी त्वचा अत्यन्त वायुनाशक होती है। (देहकी विशालता जयका साधन नहीं) अतिप्रवृद्धा शाल्मली वारणस्तम्बो न भवति ॥४५३॥ अत्यन्त पुराना या अति विशाल भी शाल्मली हाथीका बन्धन नहीं बनाया जाता। विवरण- जैसे पुराना विशाल शाल्मलि मकठिन तथा मसार होनेसे हाथी बांधने योग्य नहीं माना जाता इसी प्रकार निर्बल मनवाले लोग चाहे जितने समृद्ध और हृष्टपुष्ट हो जानेपर भी बलवानसे टक्कर लेने योग्य नहीं होते । मनुष्य में बलवद्विरोधके लिये अन्तःसार ( अर्थात् मनो. बल ) होना चाहिये । हार्दिक बल ही संग्रामकी विशेष योग्यता है, भुजबल नहीं । मेदस्वी स्थूल काय लोग कृशकाय निरोग लोगोंके साथ युद्ध छेडकर विजय नहीं पा सकते । शाल्मलीके विषयमें किंवदन्ती है 'पष्ठिवर्षसहस्राणि वने
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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