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वैधजीविका शत्रुकी भी अनाश्य
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यहांपर मनुष्यकी सामूहिक शक्तिको आततायीके विनाश में प्रयुक्त करनेसे रोकनी अभिष्ट नहीं है किन्तु वह तो कर्तन्यरूप में स्वीकृत ही है। इस महत्वपूर्ण विधेचनाको ध्यानमें रखकर माततायीकी वैध जीविकामात्रमें विघ्न डालना उसके माततायीपनको प्रोत्साहित करना तथा समाज में अशान्ति बढाना होजाता है । भाततायी जीविकार्जन करके अपना तथा अपनेपर निर्भर. परिवारका भरण पोषण करता है। आततायीकी जीविका के साथ पारिवारिकों की भी जीविकाको नष्ट करना माततायियोंकी संख्या बढाना है । राष्ट्र में बेकारी उत्पन्न न होने देना राजा तथा नागरिकों का सबका कर्तव्य है । चोरों, लटेरों, डाकुओं, आततायियोंको उचित दण्डके द्वारा ही शासनाधीन रक्खा जा सकता है । ये लोग समाजके दूषित अंग हैं । राजकीय कर्तव्य राजकल्याणकी दृष्टि से निर्धारित होते हैं । राष्ट्रकल्याणकी दष्टिसे राष्ट्रकंटक बन जानेवाले दो चार, दश पांच माततायियों का वृत्ति. सहित समुच्छेद करना राज्यव्यवस्थापकोंका अत्याज्य धर्म होजाता है । आततायी लोगोंकी जीविका परस्त्रापहरण हत्या आदि नृशंस उपायोसे ही संपन्न होती है । जब इन समाजशत्रुओंके जीविका नष्ट करने का प्रश्न अनि. वार्य रूप लेकर उपस्थित होता है तब इनके इन गर्हित उपायों को राष्ट्र की भोरसे सुरक्षित रखना या रहने देना असंभव कल्पना है। इस दृष्टिसे इस सूत्रका यही एकमात्र अर्थ होना संभव है कि शत्रकी वैध उपायोंसे होने. वाली जीविकाको नष्ट न किया जाय ।
जबतक शत्रुका अवैध जीविकार्जन प्रमाणित न होजाय तबतक उसका अर्जित धन राज्यव्यवस्थाकी ओरसे अर्थदण्डके रूप नहीं छीना जा सकता। यदि अपराध प्रमाणित न हो तो मभियुक्त व्यक्तिका निर्दोष स्वीकृत होना उसका वैध अधिकार है । किसीको संदिग्धावस्थामें दण्डित करना अवैध कार्यवाही है । जिस प्रकार डाकूके घर डाका डालना या चोरके घर चोरी करना उस जैसा अपराधी बन जाना होता है, इसी प्रकार इस सूत्र में प्रति. हिंसाकी भावनासे शत्रुताचरण करनेको निन्दित निषिद्ध ठहराया गया है।