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चाणक्यसूत्राणि
( गुरुओंकी भावना समझनेका प्रयत्न करो)
न मीमांस्या गुरवः ॥ ४२२॥ गुरुजनाका छिद्रान्वेषण न करना चाहिये । विवरण- मनुष्य हिताकांक्षी ज्ञानवृद्धोंके सूक्ष्मबुद्धि से किये गये कार्यों की प्रतिकूल समालोचना न करके उनका हृद्गत अभिप्राय समझनेका प्रयन्त करे । वह उनकी अवस्थाजनित अभिज्ञतासे अपरिचित होने के कारण उनकी अनधिकृत मीमांसा करके कार्यमें व्याघात न करे, अपने भशिष्टाचरणसे उनकी हिताकांक्षा के प्रवाहको न रोके और अपने को उनके नेतृत्वके कल्याणकारी प्रभावसे वंचित न करे । ऐसा करनेसे समालोचककी सत्यदर्शनकी अयोग्यता तथा अन्धा दुराग्रह भी प्रकट होगा और हानि भी होगी।
( दुर्जनतासे बचो)
खलत्वं नोपेयात् ।। ४२३ ।। मनुष्य खलताका आश्रय न करे। विवरण- उन्नतिकामी मानव मासुरिकतासे बचकर रहे। साधु. जनोंसे प्रवंचनापूर्ण व्यवहार करना ही खलता है । सूत्र कहना चाहता है कि मनुष्य कलह, दुर्जनता या पिशुनताको न अपनावे। दुर्जनका जीवन मानवमातासे उत्पन्न होने पर भी मानवजीवन नहीं गिना जा सकता। दुर्जन होना मानवजीवनका लक्ष्य नहीं है। दुर्जन होना तो मानवजीवन की व्यर्थता है। जिसके हृदयस्थ मानवीय गुणोंको जीवन में, व्यवहारमें आनेका अवसर ही नहीं मिलता वही दुर्जन है । दुर्जन अपने जीवनको मशान्तिकी अनल में दग्ध करता रहता है । दुर्जन अपने जीवनको नष्ट करके ही दूसरों के साथ दुर्जनता कर सकता है। पठान्तर- कलहं नोपेयात् ।। मनुष्य किसीसे अकारण कलह न करे ।