________________
दरिद्रताके कष्ट
३८७
( धूोंकी मित्रहीनता ) नास्ति खलस्य मित्रम् ।। ४२४ ।। धूर्तका कोई मित्र नहीं होता। विवरण- सजनसे दुर्व्यवहार करनेवाला खल बन्धहीन होता है। मित्रताका गुण सजनों में ही रहता है। दुर्जन सज्जनोंसे वैर करके अनिवार्य रूपसे बन्धुहीन होकर मित्रद्वेषी बन जाता है । सत्य ही मित्रताका बन्धन है जो धूर्त में नहीं होता । धूर्त सत्यहीन होता है । सत्यहीनं धूते किसी एकका ही नहीं मनुष्यमात्रका जन्म-वैरी है। धूर्त लोग परस्पर सहायक वीखनेपर भी पारस्परिक अध:पतनमें हो एक दूसरे के सहायक साथी बना करते हैं । ये लोग अभ्युत्थानमें कभी किसीके मित्र नहीं होते । ये लोग पारस्परिक उपकारके मिष से एक दूसरेका सर्वनाश दी किया करते हैं। इस कारण इन लोगोंको एक दूसरेका मित्र न कहकर शत्र ही कहना चाहिये । धूतोंके हृदय मित्रताकी उदारस्थितिके लिये जसरभूमि होते हैं । न तो धूर्त किसीका मित्र होता है और न उसका ही कोई मित्र होता है।
न दुर्जनः सहायः स्यात् भुजंगप्रकृतिर्यतः । उपकारच्छलेनव पश्चाद दुःखं प्रदास्यति॥ दुर्जन दूध पिलानेवाले को भी डंक मारनेवाले सांपकी प्रकृतिका होनेसे कभी किपाका सहायक नहीं बनता । वह उपकारके मिषसे अपने मित्र कहलानेवालोंकी भी हानि ही करता है। पाठान्तर- नास्ति कल हस्य मित्रम् ।।
शान्तिपिय लोग कलहप्रिय लोगों के मित्र नहीं हुआ करते । यह पाठ महत्वहीन होनेसे अपपाठ है।
दरिद्रता के कष्ट ) लोकयात्रा दरिद्रं बाधते ॥ ४२५ ॥ जीवनयात्राकी समस्या दरिद्रको चिन्तित रखती हैं।