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________________ 30 चाणक्यसूत्राणि वे राज्यसंस्थाको कभी सुरक्षित नहीं रख सकते । इन्द्रियोंपर विजय न पानेवाले राज्याधिकारी लोग जनताको राज्यका शत्रु बना लेते हैं । अवशेन्द्रिय राजकर्मचारियों की भूले, स्नान करके अपने ही ऊपर धूल फेंकनेवाले हाथी के समान राज्य संस्थाको मलीमस बना देनेवाली होती है । विषयलोभी राजकर्मचारियोंकी भूलें अपनी राज्यसंस्थाको अपयश दिलानेवाली, उसे अश्रद्धेय तथा घृणास्पद बना डालनेवाली होती हैं । पाठान्तर राज्यस्य मूलमिन्द्रियजयः । ( इन्द्रियजयका मूल ) इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः ॥ ५ ॥ विनय ही इन्द्रियों पर विजय पानेका मुख्य साधन है । विवरण- विनीतों की संगतमें रहकर उनसे शासनसम्बन्धी सत्यासत्यका विचार सीखकर सत्यको पहचानकर, सत्य के माधुर्य से मधुमय होकर, अहंकार त्यागकर सत्यके बोझके नीचे दबकर नम्र हो जाना विनय अर्थात् सत्याधीन होजाना है । पात्रापात्रपरिचय, व्यवहारकुशलता, सुशीलता, शिष्टाचार सहिष्णुता उचितज्ञता, न्यायान्यायबोध तथा कार्याकार्यविवेक आदि सब विनयके ही व्यावहारिक रूप हैं । विनयी मनुष्यकी इन्द्रियां उसकी सुविचारित स्पष्ट माज्ञाले बिना संसा रमें कहीं एक पैर भी नहीं डालतीं । उसकी इन्द्रियों के पैरोंमें शमकी वद भारी शृंखला पडी रहती है जो उन्हें कुमार्गमें जाने ही नहीं देती । नम्रता सुशीलता आदि सब विनीत मनके धर्म हैं । मनके धर्मपरायण होते ही इन्द्रियां अपने आप विजित हो जाती अर्थात् विजित मनके प्रति मात्मसमर्पण करके रहने लगती हैं। विनयी मानव अपनी स्थिरता तथा धीरता के प्रभाव से अपनी इन्द्रियोंपर वशीकार पाकर रहता है । अविनीत मनुष्य अविमृश्यकारी होता है । उसकी इन्द्रियां प्रत्येक समय उसे अधिकारहीन
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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