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________________ विनयका मूल तथा अनुचित भोगोंके लिये उत्तेजित करती रहती हैं । राज्याधिकारी लोग अपने विनयसे ही राष्ट्र के कोकमतको वश में रख सकते हैं । इतिहास बताता है कि बहुतसे राजा लोग भविनयसे ऐश्वर्य सहित ध्वस्त हो चुके हैं। इसके विपरीत बहुतसे लोग विनयके कारण झोपडोंके निवासी होकर भी राज्य पाकर गये हैं । इसलिये राज्याधिकारी लोग पवित्र ज्ञानवृद्धों की संगत किया करें और उनसे विनय सीखकर विनीत बनें। यदि वे विनीत नहीं बनेंगे तो वे मस्तकसे मालाको उतार फेंकनेवाले मस्त हाथीके समान राज्यश्रीको नष्ट-भ्रष्ट कर डालेंगे । विनयके विना उनकी स्वेच्छाचारिता रुकना असंभव है और उसके रहते हुए उनका राज्य खो बैठना सुनिश्चित है । (विनयका मूल ) विनयस्य मूलं वृद्धोपसेवा ॥ ५ ॥ ज्ञानवृद्धोंकी सेवा विनयका मूल है। विवरण- विनय अर्थात् नैतिकता, नम्रता, उचितज्ञता, शासनकुशलता, आदि रूपोंवाली सत्यरूपी स्थिर संपत्ति अनुभवी ज्ञानवृद्ध लोगोंकी सेवामें श्रद्धापूर्वक बार बार ज्ञानार्थी रूप में उपस्थित होते रहने से ही प्राप्त होता है। मनुष्यको ज्ञानवृद्धोंके सत्संगसे सत्यरूपी थिर धन प्राप्त हो जाता है । मनुष्य विद्या, तपस्या और अनुभवसे ज्ञानवृद्ध बनता है । ज्ञानवृद्धोंके पास जाकर उनकी योग्य परिचर्या करते हुए जिज्ञासु या शुश्रूपु बने रहना वृद्ध सेवा कहाती है। ज्ञानवृद्धोंके पास बार बार जाते रहनेसे उनकी विद्या, तपस्या तथा उनके दीर्घकालीन अनुभवोंसे लाभ उठानेका अवसर मिल जाता है । ज्ञानवृद्ध लोग पानसे बाहर बहना त्यागकर भंडारमें आ जानेवाली शरत्कालीन नदियों के समान मर्यादापालक तथा कार्याकार्यविवेकसंपन्न होते हैं । दण्डनीति तथा व्यवहारकुशलताके पाठ ऐसे ज्ञानवृद्धोंसे ही सीखे जा सकते हैं। ज्ञानवृद्धोंकी सेवासे विनीत राजा ही प्रजाको विनय के पाठ सिखा सकता है और राज्य भोग सकता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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