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________________ नीचका विश्वास अकर्तव्य १७७ विवरण - नीच व्यक्ति विश्वासपात्र के साथ विश्वासघात करता है । दुष्कार्यप्रियता, परापमान, धूर्तता, शठता, कपट, प्रतारणा, पराधिकारका अपहरण नीचोंके प्यारे व्यापार हैं । सत्पुरुषोंका अपमान, उनका अभीष्टविध्वंसन आदि दुष्कार्य करनेकी प्रवृत्ति ही नीचोंकी पहचान है । उन्हें सदा गर्हित आचरण, दूसरेका परिहास आदि अभद्र काम ही रुचते हैं । जैसे श्वानको उच्छिष्ट भोजन या जैसे चोरोंको अँधेरा प्यारा लगता है, इसी प्रकार शठ लोगोंको समाजके साथ विश्वासघात करना बडा प्रिय लगता है । ( नीचको समझाना अकर्तव्य ) नीचस्य मतिर्न दातव्या ॥ २०३ ॥ नीच, हीन, शठ मानवको सदुपदेश देकर उसे धर्मबुद्धि बनानेका प्रयत्न मत करो । विवरण- विपथगामी बुद्धिवाले नीचको सदुपदेश देनेका परिणाम विपरीत होता है । वह एक भी अच्छी बात माननेको उद्यत नहीं होता । नीचको उपदेश देना केवल व्यर्थ ही नहीं है उसे अपना शत्रु बनालेना भी है। जिसने उपदेश मानना ही नहीं, उसे दिया हुआ सदुपदेश किसीको गोखरू खानेको कहने जैसा अमान्य हो जाता है । ( नीचका विश्वास अकर्तव्य ) तेषु विश्वासो न कर्तव्यः || २०४ || करों, शठों, पंचकों नीचोंका विश्वास न करना चाहिये । विवरण - नीचोंसे विश्वासका सम्बन्ध जोडना, साधुता या महात्मापन समझा जाता है । परन्तु न तो यह साधुता है और न यह महात्मापन है । नीचोंको किसीका भी विश्वास पानेका अधिकार नहीं है । वे तो लोगों के अविश्वास भाजन बने रहने के ही अधिकारी हैं । ऐसोंको अपनी कोई ऐसी मार्मिक बात बताना जिससे वे कोई हानि पहुँचा सकें नीतिहीनता और निष्फल व्यापार है । पाठान्तर-- नीचेपु १२ ( चाणक्य . ) 1
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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