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________________ शत्रुविजयका अमोघ साधन राज्यसंस्था या किसी दलके किसी भी व्यक्तिका दुराचार, समस्त राज्यसंस्था या सारे दलको हीनवल बना डालता है । विवरण- किसी राज्यसंस्थाका एक भी सदोष राज-कर्मचारी, संपूर्ण राज्यसत्ताका कलंक है । जैसे एक चावलसे बटलोई के समस्त चावल परखे जाते हैं, इसी प्रकार एक राज-कर्मचारीकी बुराई से उसे सह लेने. वाली समस्त राज्यसत्ताके दूषित होने का प्रमाण मिल जाता है। इसलिये राज्यसत्ताका यह महान् उत्तरदायित्व है कि वह अपने प्रत्येक राजकर्मचा. गको भ्रष्टाचार करनेसे रोके रहे और राजकीय सेवक-वृकोंको प्रजाका आखेट न करने दे । यही नियम समस्त समाजपर भी लागू होता है । जिस सम!. जका एक भी व्यक्ति दूषित होनेपर भी दण्ड नहीं पारहा है, वह उस संपूर्ण समाजका कलंक है। इसलिये अपने समाजके प्रत्येक व्यक्तिको धार्मिक बनाकर रखना समस्त समाजका सुमहान कर्तव्य है । ( सदाचार शत्रुविजयका अमोघ साधन ) शत्रु जयति सुवत्तता ॥ २०१॥ सदाचार शत्रुपर विजय प्राप्त कराने का अमोघ साधन है । पाठान्तर--- शत्रं जयति सुवृत्तः । सदाचारी शत्रुपर विजय पालेता है। विवरण- स्वपक्षका सदाचार हो स्वपक्षकी शक्तिको सुरक्षित रखकर शत्रको हरासकता है। इसके विपरीत स्वपक्षका दुराचार स्वपक्षको शक्ति. हीन बनाकर शत्रको विजयी बनादेता है। जिसका अपने आचारपर वश नहीं है, जिसका अपना ही मापा अरक्षित है वह पहले तो मनिवार्यरूपसे शत्रुके प्रलोभनों में फंसेगा और फिर अपने देशके स्वाथको बेचनेवाला देशद्रोही बन जायगा । वह शत्रुपर विजय कसे पायेगा ? संसारमें मनुष्यका सबसे पहला सहा शत्रु उसीका दुराचार है, जो मानसिक निर्बलताके रूप में उसके मन में बैठकर उसे तोड-तोडकर खाता रहता है । दुराचार मनुष्यका आभ्य - न्तरिक शत्रु है । दुराचाररूपी शत्रुपर विजय पाये बिना बाह्य शत्रुओंपर
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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