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भूमिका
उदासीन रह जाना उससे शत्रुता करना है। निद्रितोंको असह्य प्रतीत होनेवाली जागरण प्रेरणामोंके समान मोहनिद्रामों में अचेतन पड़े हुए व्यक्तियों, समाजों या राज्यसंस्थानोंकी भ्रान्त प्रवृत्तियोंकी मालोचनामों से इन्हें अपनी मोहनिद्रा भंग किये जानेका असा प्रतीत होना स्वाभाविक है । मोह रजनीमें भी तो एक प्रकारका तामस सुख या सुखभ्रान्ति रहती है। वह सुखभ्रान्ति कल्याणकारी यथार्थ सुखको ठके रहती है। सच्ची मालोचनामें सदा ही असन्मार्ग छुडाने तथा सन्मार्ग ग्रहण कराने की भावना होती है। उन्नतिशील लोग अपनी भालोचनासे अपना धीरज खोकर घवरा नहीं जाते। प्रत्युत वे हितकर्ता विरोधी पक्षका निम्न शब्दों में स्वागत करते हैं।
जीवन्तु मे शत्रुगणाः सदैव येषां प्रसादात् सुविचक्षणोऽहम् । यदा यदा मे विकृति भजन्ते तदा तदा मां प्रतिबोधयन्ति ॥ मेरे उद्देश्य या नीतिकी त्रुटि दिखानेवाला मेरा वह समालोचक शत्रु पक्ष सदा बना रहे जिसकी कटु मालोचनासे सदा सतर्क रहने के लिये विवश हो जानेवाला मैं सुचतुर निर्दोष बन गया हूं। यह पक्ष जब मेरी त्रुटि देखता है तभी मुझे अपनी भूल सुधारने के लिये सावधान कर देता है। __ संसारका अनुभव है कि कोई भी संस्था शत्रुवेशी सच्चे समालोचकों के बिना निर्दोष रूपसे काम नहीं कर सकती । सच्ची मालोचनामोंसे लाम सठानेवाले लोग कटु हितवादीके गुणग्राही और कृतज्ञ हो जाते हैं। इसी लिये मार्य चाणक्यने अपने अर्थशास्त्र (१-७ ) में कहा है।
मर्यादां स्थापयेत् आचार्यानमात्यान् वा य
एनमपायस्थानेभ्यो वारयेयुः प्रमाधन्तमभितुदेयुः । राजालोग किन्हीं ऐसे विधावृद्ध, वयोवृद्ध, तपोवृद्ध, अनुभववृद्ध, सस्करणीय विद्वानोंको अपने लिये अनुल्लंघनीय सीमा बना कर अपने पास रखें जो इसे प्रमाद न करने दें प्रत्युत प्रमाद करनेसे अधिकारपूर्वक टोके मौर रोकें ।