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१.
चाण
रहती । तब उसे अपने वचनों में से ये दोनों मंश घटा देने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में श्रोता तथा पाठकोंके मलों में कटु आलोचना सुनने तथा पढनेका धीरज होना उनके सौभाग्य तथा उनकी वर्धिष्णुताका चिन्ह माना जायगा।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥ अप्रिय पथ्य कहने और सुननेवाले दोनों ही दुर्लभ होते हैं। हितकारी कटु मालोचना सुनना जैसे किसी एक व्यक्ति के लिये हितकारी तथा कल्याणकारी है इसी प्रकार वह समाज, राष्ट्र तथा राज्यसंस्थाके लिये भी तो कल्याणकारी है।
कडवी औषध बिन पिये मिटे न तनका ताप ।
हितकी कडवी विन सुने मिटे न मनका पाप ॥ कौन नहीं जानता कि उत्पश में जाने वाली शक्तियोंके दूषित प्रवाहोंको रोक देने के लिये प्रयुज्यमान सद्बोधन, कर्णकटु तथा गात्रदाहक होते ही हैं। रोगियोंको अनिच्छापूर्वक कटु औषध पिलानेवाले पद्वैद्यों या अभिभावकों. के समान ज्ञानपूर्वक या मानपूर्वक समाजका अहित करनेवालों के कटु सत्य सना कर उनकी विपरीत प्रवृत्तियों को शेकना और उन्हें कतं. व्यका सच्चा मार्ग सुझाना समाज के निष्ठावान सेवकों का अनिवार्य कर्तव्य है । कटु हित कहनेवालेकी यही भावना होती है कि अहितको हित समझ बैठनेवालोंके न चाहने पर भी उनको मोहनिद्रा भंग करने के लिये उन्हें झकझोर कर उठा दिया जाय और उन्हें मोहनिद्रा त्यागने के लिये विवश कर डालनेवाली परिस्थिति उत्पन्न कर दी जाय।
अपृष्टोऽपि हितं बृयात् यस्य नेच्छेत् पराभवम् । मनुष्य जिसे पराभूत होता देखना न चाहे, उसके बिना पूछे भी उस हितकी बात सुझाना उसके हितचिन्तकों का अनिवार्य अत्याज्य कर्तव्य हो जाता है। किसीके हितचिन्तकों का उसकी भ्रान्त प्रवृत्तियोंको न रोक कर