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________________ મમ ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडंगो वेदोऽध्येयो शेयश्च ।। छों अंगोंसहित वेदोंका अध्ययन तथा मर्मज्ञान प्राप्त करना विद्या. प्रेमी मामवका निष्कारण धर्म है । महर्षि पतंजलिका शिक्षाका यह निष्काम पवित्र आदर्श, जिसके बलसे भारत सदासे महापुरुषों की जन्मभूमि बनता भा रहा था, सर्वथा लुप्त हो गया है । आप भारतकी वर्तमान तथा भावी सन्तानोंके साथ विगत पीढियों की तुलना करके इस सत्यको प्रत्यक्ष कर सकते हैं। भाजकी भारतकी मानसिक स्थिति हमारे राष्ट्र में राष्ट्रीयताको म्रियमाण और असामाजिकता तथा नीतिभ्रष्टताकी उदीयमान स्थिति है । भारतको इस स्थिति से शीघ्र ही उबारनेकी आवश्यकता है। प्रभुतालोभी नेता. पनकी मदिराने भारतको नशे में चूर बना डाला है । देशसे इस प्रभुता. लोभी मदिराका बहिष्कार करनेका एकमात्र उपाय उसकी पाठविधिमें चाणक्य की राजनैतिक चिन्ताधाराको समाविष्ट करना ही है। यदि भारत. माताको सत्यानुगामी स्वतन्त्र विचारक स्वतन्त्रता प्रेमी वीरों की जननी होनेका गौरव देना हो तो उसका एकमात्र उपाय, देशको राष्ट्रसुधारकशिरोमणि, राजनैतिक धन्वन्तरि चाणक्यकी विचारधारासे भाप्लावित कर डालना ही है । यदि आजके भारतीय युवकों को भारतीय राजधर्म प्रकाण्ड पण्डित चाणक्य की सुपरिमार्जित विचारसरणीसे सुपरिचित न कराया गया तो भारत भोगैकलक्ष्य दास कापुरुष उत्पन्न करने वाला बना रहेगा। हितं मनाहारि च दुर्लभं वचः । यह एक सुनिश्चित सिद्धान्त है। हितकारी वधनों का मीठा होना अपनी वैज्ञानिक स्थिति, है । इस लोकोक्ति में दुर्लभका अर्थ असंभव है। इस हा है कि भ्रान्त पथके अवरोधक उद्बोधक हितकारी वचनों का कर्णकटु तथा गात्रदाहक होना न केवक मनिवार्य है प्रत्युत आवश्यक भी है । यदि कोई वक्ता या लेखक हितकारी वचनोंकी कटुताको घटा देना चाहता है, तो उससे उस वचनकी भ्रान्तपथ रोधकता तथा उद्बोधकता भी घटे विना २ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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