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चाणक्यसूत्राणि
कालके लिये नित्य सुखी या उसे क्षणिक आत्मविस्मृतिके गहरे गर्तमें डुबो. कर अनन्त दुःखी बना डालती है । __ मानवमें जो यह क्षणिक स्वरूपविस्मृतिका भावेश भाता है वही तो उसके सामने आपातमनोरम मिथ्या स्वार्थक्षेत्र रचकर खड़ा कर देता है । और उसे उसी स्वकल्पित क्षेत्र के बन्धनमें बंधकर पड जाने के लिये विवश कर डालता है। इस दृष्टि से सच्ची शिक्षाका यही स्वरूप मानना पडता है कि वह मानव सन्तानको देहाध्यासजन्य मात्मविस्मृतिके गर्त में गिर मरनेसे बचाये और उसे ऐसी उदार मानसिक स्थितिमें प्रतिष्ठित कर दे जिसमें उसे सच्चे व्यावहारिक अर्थों में मात्मबोध हो जाय और परिणामस्वरूप उसकी कर्मभूमिमें किसी प्रकारका भौतिक स्वार्थबन्धन उसके मन पर प्रभाव न जमा सके और उसे कर्तव्यपथसे भ्रष्ट न कर सके । चाणक्य. सूत्रों में यही शिक्षा समाजकल्याणकारिणी ज्ञानज्योति लेकर विद्यमान है।
भारतकी वर्तमान स्थार्थमूलक तथा अज्ञान मूलक राजनैतिक दुर्दशामें एकमात्र चाणक्यका ज्ञानभण्डार ही भारतका पथप्रदर्शक बननेकी क्षमता रखता है। वही भारतवासियोको राजनैतिक, सामाजिक तथा माध्यास्मिक मुक्तिका मार्ग दिखा सकता है। भारतकी वर्तमान सदोष राष्ट्रीय परिस्थिति इसकी वर्तमान कुशिक्षा ही के कारण है । भारतकी वर्तमान राष्ट्रीय परिस्थिति आज भारतीय राज्य हो जाने के दस वर्ष पश्चात् भी उसी कुशिक्षाके कपटजाल में फंसी हुई है जिसमें इसे बिटिश लोग अपने वैदे. शिक स्वार्थसे फांस गये हैं। उसके कारण भाजके भारतवासीके सिर पर राष्ट्रीय भावना राष्ट्रहित तथा मनुके भादोंकी उपेक्षा करानेवाली स्वार्थचिन्ता मारूतु ( सवार ) हो गई है। भारतको राजनैतिक क्षेत्र में व्यामोह । धोके ) में डाल दिया गया है। भारतमें लोगोंको अपने पीछे चलाने. वाले प्रभुतालोभी नेतापनके दूषित भादर्शको तो राष्ट्रीय शिक्षाका ध्येय बना दिया गया है तथा मर्थकरी विद्याको समस्त समाजका ध्येय बना दिया गया है. इससे देश में सांस्कृतिक ध्वंस मच गया है । परिणामस्वरूप नैतिकता कान पकड कर समाजसे बहिष्कृत कर दी गई है।