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समाजमें निष्कपटोंकी न्यूनता
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सत्य ही ऋजुता है और धार्मिकता ही ऋजुता है । परन्तु भ्रान्त आध्या.. स्मिकताने अपने अनुरूप कपट माध्यात्मिकताकी, सृष्टि की है। उसने समाजको मनुष्यकी कामप्रवृत्तियोंको या यों कहें कि उसकी अमर्यादित मोगलालसाको माश्रय देनेकेलिये पाप अन्याय अत्याचार बासुरिकता मादिके विरोधोंके संकट में पडनेका निषेध करके उस दुष्ट कामको खुलकर खेलनेकी पूरी छूट देढाली है जिसे संयत रखकर समाजकी शान्तिका संरक्षक बनाकर रखना चाहिये था । इस भ्रान्त माध्यात्मिकताने संसारके निष्क्रिय नपुंसक असाहसी मप्रतीकारपरायण अशान्त्युत्पादक कापुरुषोंका समाज रच डाला है और उसमें भ्रान्त शान्तिका प्रचार किया है। उसने शान्ति अन्याय अत्याचार उत्पीडन आदि पापोंका दमन करनेके कामको शान्तिकी परिभाषामें न रहने देकर, अशान्तिदमनके कर्तव्यसे भागते रहनेको ही शान्ति या माध्यत्मिकताका नाम देकर समाज में प्रचारित किया है । इस प्रचारने समाजमें चिरकालसे रहते रहते उसका अशान्तिका विरोध करनेका स्वभाव छीन लिया है और उसे एक निर्विरोध नपुंसक समाजका रूप देहाला है। उनका यह सहस्रो वर्षों से लगातार चला आनेवाला दूषित प्रचार ही राजशक्तिके असुरोंके हाथों में जाने और रहनेका एकमात्र साधन बनता चला मारहा है।
जिन्हें अपने देशका शासन असुरप्रकृति के लोगों के हाथों में रहना खटकता हो. और जो आसुरी राजशक्तिको नष्ट करना चाहे, वे आसुरी राज्यको छिन्न भिन्न करने के योग्य बननेकेलिये सबसे पहले भापको इस काम के लिये योग्य बनायें। उसके लिये यह मनिवार्य रूपसे भावश्यक है कि वे सबसे पहले अपनी भोगलालसापर उस संयमका शासन स्थापित करें जिस संय. मसे अज्ञानी समाजको छुट्टी देदेना ही भ्रान्त आध्यात्मिकता है। इस भ्रान्त आध्यात्मिकताका प्रचार करनेवाले महात्मा वेषधारी असुरोंको पहचान लेनेवाला ज्ञाननेत्र खोलकर समाजको असुरविद्रोही बनानेवाली सच्ची ऋजुताका कल्याणकारी पाठ पढाना ही इस सूत्रको यहां रखनेका गूद अभिप्राय है । ऋजुता दुर्लभ है, इस निराशवर्धक समाचारका प्रचार करना