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________________ समाजमें निष्कपटोंकी न्यूनता १४१ कोई भी स्थान नहीं है। जो मनुष्य दुर्जनके साथ भी निष्कपट बर्ताव करनेका दिखावा करता है वह दुर्जनकी दुर्जनताका ही समर्थक सत्यघातक विपरीतव्यवहारी होकर स्वयं भी दुर्जन श्रेणी में चला जाता है। दुर्जनोंके साथ निष्कपट बर्ताव करने का प्रदर्शन करनेवाले लोग या तो यशोलोलुपता रूपी मानसिक निर्बलतासे आक्रान्त अथवा दुर्जनों के प्रतिविधान ( बदले ) से भयभीत रहनेवाले कायर लोग होते हैं। सबके भले महात्मा बननेको भावना इन लोगोंका विवेक हरलेती है । इस प्रकारके लोग सबके भले बने रहने की यशोलिप्सासे दुर्जनोंके प्रभावमें भाकर उनके तो सहायक तथा सचाई के घातक बनकर समाजके शत्रुओंमें ही सम्मिलित होजाते हैं । किसी भी चक्षुष्मान् व्यक्तिका श्रेष्ठ दष्ट दोनों पक्षों में सम बर्ताव करनेवाला होना किसी भी प्रकार संभव नहीं है। दोनों पक्षों में समभाव अव्यावहारिक कल्पना है । अच्छे बुरेकी असंभव समता ऋजुताके अर्थ में मा ही नहीं सकती। किन्तु सत्यकी सक्रिय अनुकूलता तथा असत्य अन्याय या पापकी प्रभावशालिनी क्रियात्मक प्रतिकूलता ही ऋजुताका मर्म है। जिस विषयलोलुप स्वार्थी संसारको सत्यका पक्ष अपनानेसे अपनी भौतिक परिस्थितिको हानि पहुंचनेकी संभावना देखती है वह उससे डर. कर दुष्टोंकी दुष्टताका विरोध न करनेकी नीति अपनालेता है। वह अपने वैषयिक संसारपर चोट न माने देनेके लिये अपने इस अविरोधको माध्यात्मिकता, नि:स्पृहता, मसंगता और उदासीनताके रंगमें रंगकर महात्मा बनना चाहता है। समाज सदासे समाजसंरक्षक तथा समाजघातक दो श्रेणियों में अनिवार्यरूपसे विभक्त होता मारहा है । परन्तु इस भ्रान्त माध्यास्मिकताने धर्मका ठेका लेरखनेवाली एक और तीसरी श्रेणी पैदा करडाली है जो सदासे लाखों कपटी महात्मा पैदा करती रही है । यह श्रेणी शान्तिप्रिय. ताका ढकोसला करके दुष्टविरोध न करनेकी नीतिको अपनाये रहती है और आश्चर्य तो यह है कि यह सब भ्रान्त आध्यात्मिकताके सृष्ट असंगता अविवादरुचिता आदि उदात्त धमाँकी दुहाई देकर या ढकोसला करके करती
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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