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चाणक्यसूत्राणि
( समाज में निष्कपटोंकी न्यूनता ) ऋजुस्वभावो जनेषु दुर्लभः ॥ १५९ ॥
सत्पुरुष के साथ निष्कपट निर्व्याज, सभ्य, बर्ताव करनेवाला, कर्तव्यपालन मात्रपर दृष्टि रखनेवाला ऋजु व्यक्ति मनुष्यों में दुर्लभ होता है ।
विवरण - संसार में सचाई से ही सचाईका विनिमय देनेवाले व्यक्ति विरल होते हैं ।
सत्पुरुषों के साथ सचाई से बर्तावशुद्धबुद्धि मनुष्य अनिवार्य रूप से सत्यका तो पक्षपात्र तथा असत्यका विरोध करनेवाला होता है ! उसको ऋजुता उसे असत्यका विरोध करनेसे रोकनेवाली दिखावटी ऋजुता नहीं होती । वह असत्यारूढ परिचितोंको क्षणभर में अपरिचितके समान त्याग देता है । वह किसी दूसरे के लिये ऋजु नहीं है । वह तो अपने आराध्यदेव सत्यनारायणको आराधनाको अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिये ऋजु है और केवल ऋजु है । परप्रदर्शन या पराराधन उसकी ऋजुताका स्वरूप नहीं है। वह पराराधननिरपेक्ष होकर जहां कहीं अपने आराध्य सत्यको पाता है, वही ऋजु और जहां सत्यको नहीं पाता, वहां क्रूर, कठोर, भक्षमी, असहिष्णु और प्रतिविधाता बनने से नहीं चूकता। संसार में ऋजुताके कृत्रिम प्रदर्शन बहुधा होते हैं । परन्तु सत्यारूढों से बनावटी शिष्टाचारवाली ऋजुता से संबन्ध नहीं रखाजाता । सदसद्विचार न रखनेवाले मनुष्य की दिखावटी ऋजुता वास्तवमें ऋजुता न होकर निर्बुद्धिता, विचारहीनता, कुटिलता और परवचनका दुष्ट कौशलमात्र होता है ।
कुछ लोग दुष्टोंके साथ भी सरल बर्ताव करनेका उपदेश देनेकी धृष्टता करते हैं और वे इस मूढताको भी ऋजुता के अर्थ में लानेका दुःसाहस करना चाहते हैं | परन्तु दुर्जनों के साथ निष्कपट बर्ताव करनेका यशोलोलुप अन्यावहारिक संसार में कोई स्थान भले ही हो, व्यावहारिक संसारमें तो उसका