________________
कामका दासतासे हानि
हे अर्जुन, मैं प्राणियों में पाया जानेवाला धर्मका अविरोधी काम हूं । मनुष्य उस अर्थ तथा उस कामको परित्याग करदे जो धर्मसे हीन हो । धर्मविरोधी कामके सेवन से भोगलौल्य बढता है, इन्द्रियें विषय के पंकमें फंस जाती हैं, और भोगीके हृदयको अशान्त करके उससे समाजकी शांतिका भंग करवाती हैं ।
१३९
मानवकी इन्द्रियोंका विषयलोलुप होकर विषयोंमें प्रवृत्त होजाना और उनपर मानवका प्रभावशाली नेतृत्व या नियन्त्रण न रहना कामका दूषित रूप है। उसका यह दूषित रूप धर्म तथा अर्थको तिलांजलि मिलजाना निश्चित कर देता है । कासे बढे हुए इस दूषित रूपसे मनुष्यजीवन स्वयं कलुषित होकर समाजकी शांति घातक शत्रु बन जाता है और व्यक्ति तथा समाज दोनोंकी आपत्तियें बढजाती है । इसलिये श्रेष्ठ मानव के जीवन में कामको धर्म, अर्थके अनुरूप या इनका अविरोधी बनकर रहना चाहिये ।
( अधिक सूत्र ) तद्विपरीतः कामाभासः ।
अधर्मीका उत्पादक तथा अर्थनीतिका विनाशक काम आपाततः सुख प्रतीत होनेपर भी अतृप्तिजनक शान्तिघातक दुःख हो । विवरण- इस उच्छृंखल कामसे मानवकी भोगेच्छाओंका संबंध त है परन्तु इसके साथ मानव के कल्याण और शान्तिका कोई भी संबंध नहीं है । ऐसे अधर्मजनक अर्थनाशक तथा अशान्त्युत्पादक कामसे मानवका अनिष्ट ही होता है । अपना अनिष्ट करनेवाली वस्तुकी इच्छा काम नहीं दुष्काम है 1 इसी प्रकार दूसरेका अनिष्ट करने की इच्छा भी काम नहीं दुष्काम ही है ( काम की दासतासे हानि )
1
तद्विपरीतोऽनर्थसेवी ॥ १५८ ॥
धर्मार्थाविरोधी कामसे विपरीत कामना करनेवाला मानव, अपने जीवनको व्यर्थ करता, समाजमै अशान्ति उत्पन्न करता तथा समाजकी शान्तिकी शृंखलाको नष्ट कर देता है ।
-