________________
१३०
चाणक्यसूत्राणि
विवरण- धरोहर रखनेवाले के साथ भेदबुद्धि रखकर ( अर्थात् उसे केवळ अपना स्वार्थ निकालनेका साधनमात्र समझकर और अपनेपर उसका कोई उत्तरदायित्व न लेकर ) व्यक्तिगत या राष्ट्रीय धरोहर रखनेवाले स्वार्थी लोगोंका केवल स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण रहता है।
क्योंकि वस्तु जिसके पास धरोहर रखी जाती है, उसके साथ विश्वासका संबन्ध जुड़ा रहता है, इसलिये विश्वास ही सच्ची धरोहर है। यह सूत्र विश्वा. सरूपी अपनी धरोहरको उपयुक्तपात्रोंको समर्पित करनेकी प्रेरणा देरहा है
और चाहता है कि किसी राष्ट्र के लोग अपनी विश्वासरूपी धरोहरको अपा. त्रोंको सौंपनेकी भूल न कर बैठे । पात्र अपात्रका विवेक करके विश्वासका संबन्ध सुपात्र के साथ ही जोडना चाहिये । किसीको धरोहर सौंपने के संबन्धमें इतनी सावधानी बरतनेपर कटुता और कर्तव्यहीनताका दोष लगानेकी संभावना नष्ट होजाती है। जो मनुष्य मांख बन्द करके किसीके भी साथ धरोहर रखने का संबन्ध मन्धाधुन्ध जोड लेता है उसके संबन्धमें कटुता आना और शिकायतका अवसर पैदा होना अनिवार्य है। स्वार्थभेदकी दूषित चोरबुद्धि लेकर दूसरोंकी धरोहरका उत्तरदायित्व लेना पाप है। ऐसा उत्तरदायित्व लेनेवालोंके मनमें उस धरोहरमेंसे केवल अपना स्वार्थ निकालने के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है ? जैसे स्तनोंपर चिपटनेवाली जोख गौके यनमेंसे दूध न पीकर रुधिर ही पीती है इसी प्रकार मनमें स्वार्थभेदको रखकर धरोहर संभालनेवाले लोग सेवा या कर्तव्यपालनका सन्तोष न लेकर सब समय उस धरोहरमेंसे कुछ न कुछ या अधिकसे अधिक चुरा लेनेके विचार रखते हैं। ऐसे लोगों को पहचानना तथा ऐसों के पास धरोहर न रखना जनताका स्वहितकारी महत्वपूर्ण कर्तव्य है। धरोहर तो ऐसे लोगों के पास रखी जानी चाहिये जो धरोहर रखनेवाले के हितमें अपना हित समझनेवाले धार्मिक (ईमानदार ) हों। धरोहरका अर्थ ही विश्वास है। विश्वासका संबन्ध उन्हीं लोगोंसे जोडना चाहिये जिनकी भोरसे विश्वासघातकी कोई संभावना न हो। सूत्रका व्यापक अभिप्राय यही है