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बहुतोका कर्तापन कार्यनाशक
राष्ट्रका विधान बनाने या राष्ट्रप्रबन्धसंबन्धी गम्भीर प्रश्नों का समाधान करनेके संबन्धमें मतभेद रखनेवाले, भिन्न भिन्न स्वार्थी संप्रदायों, दलों या व्यक्तियों को सम्मिलित करलेना ( अर्थात् उनका कर्तापन करलेना ) तो इसका उद्देश्य ही नष्ट करलेना होजाता है । राष्ट्र शक्तिमानू तब ही रह सकता है जब कि राष्ट्र की प्रतिनिधि राज्यशक्तिको शक्तिमान् बनाकर रखा जाय । व्यवस्थानिर्माताओं तथा व्यवस्थाकर्ताओंका ऐकमत्य ही निर्दोष राजशक्ति होती है । राजशक्ति में भिन्न भिन्न राजनैतिक मन्तव्य रखनेवालोका सम्मिलित रहना तो स्पष्ट ही राजशक्तिकी निर्बलता है। राजशक्ति की निर्बलता राष्ट्रकी ही निर्बलता है । यह निर्बलता राष्ट्रके ध्वंसका कारण बन जाती है । राष्ट्रप्रबन्धकों तथा व्यवस्थाकर्ताओंका ऐकमत्य राष्ट्रकी महत्व. पूर्ण आवश्यकता है । जब राज्यसंस्थामें इस प्रकार के प्रतिनिधि सम्मिलित रहते हैं, तब राष्ट्र की हिताकांक्षा अनेक मकराकृष्ट शवदेहके समान खण्डित
और विभाजित न होकर, एक व्यक्तिकी व्यक्तिगत हिताकांक्षाके समान निर्भद होकर एकाकार बनी रहती है। राष्ट्रके सच्चे हितैषी निःस्वार्थ प्रति. निधियों के व्यक्तित्वकी भिन्नता पारस्परिक विरोधका कारण न बनकर समस्त राष्ट्रसंस्थाको ऐकमत्य या एकसत्रमें बांध डालनेवाली बनजाती और राष्ट्र के प्रत्येक प्रतिनिधि के मनमें राष्ट्रहितैषिता सशरीर होकर आविराजती हैं । यदि राष्ट्रव्यवस्थाको लोककल्याणकारी बनाना हो तो उसका सच्चे राष्ट्रहितैषियों की सर्वसम्मतिसे होना अत्यावश्यक है। यदि राष्ट्रव्यवस्थाके प्रश्नमें मतभेद रह जाता है तो उसमें वह सर्वजनहितकारिता नहीं रह सकती जो कि रा. व्यवस्थाकी अनिवार्य आवश्यकता है।
इस दृष्टि से अल्पमतके विरुद्ध बहुमतको मान्यता देने की परिपाटी राष्ट्र. व्यवस्थाके सर्वजनहितकारी होनेके सिद्धान्तके विरुद्ध सिद्ध होजाती है। इस प्रकारका बहुमत एकत्रित कर लेना राष्टके अल्पमतवाले भागपर माक्रमण करनेवाली मनोवृत्ति है। यह सेवक मनोवृत्ति नहीं है । राष्ट्र के सेवक ही राष्ट्रके कर्णधार होनेकी योग्यता रखते हैं। बहुमतको राष्ट्रका कर्णधार बनाने की