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चाणक्यसूत्राणि
होकर लोकयात्रा रुक जाती है । तब प्रजा राजाके विरुद्ध विद्रोह करनेपर विवश होजाती है ।
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( राजचरित्र अर्थलाभका आधार ) वृत्तिमूलमर्थलाभः || ९० ॥
राज्यभीकी प्राप्ति राजाके चरित्रपर निर्भर होती है ।
विवरण --- राज्यैश्वर्य का लाभ चरित्रमूलक या दण्डनीति के उचित प्रयोगसे ही होता है । राजा प्रजा दोनोंका चरित्र ठीक होनेपर ही दण्डनीतिका उचित प्रयोग होता रहकर दोनोंको ऐश्वर्यलाभ होता है । चारित्रिक सुव्यवस्था या देश में मानसिक शान्ति और सदिच्छाओंके वातावरणके बिना ऐश्वर्यलाभ असम्भव है । राजशक्तिके भ्रष्टाचारी होजानेपर प्रजामें शान्ति, सौमनस्य, सदाचार धर्म आदिको प्रवृत्तियें न रहने या पैदा न की जानेसे धर्मकी और उसीके साथ अनिवार्य रूप से धनार्जनकी भी महती हानि होती है । प्रजाको जीवन के साधनोंके अप्राप्य होजानेसे विद्रोह तथा लोकक्षय होजाता है । राष्ट्रमें सुखशान्ति तथा समृद्धि रहने के लिये राजा प्रजा दोनों में धार्मिक प्रवृत्तियों का होना राष्ट्रके धनी होनेसे न्यून आवश्यक नहीं है । अधार्मिक राष्ट्रका बाह्यतः धनवान होना वास्तव में धार्मिक जनताकी दरिद्रताका द्योतक होता है। किसी अधार्मिक राष्ट्रके धनी होनेका अर्थ यह है कि वहां के धार्मिक लोग दरिद्र हैं । परन्तु धार्मिक लोगों की दरिद्रता राष्ट्रका अभिशाप है । इसलिये है कि राष्ट्रकी धार्मिक जनता ही वास्तव में राष्ट्रका सच्चा प्रतिनिधि है । राष्ट्रकी अधार्मिक जनता तो राष्ट्रकी शत्रु होती है प्रतिनिधि नहीं । वह स्वार्थवश होकर राष्ट्रकी हानिकी ओर से आंख मीचलेती हैं । इस कारण उसे राष्ट्र के नाम से सम्मानित न करके राष्ट्रद्रोही ही समझना चाहिये । अधर्म से उपार्जितधन देशके धार्मिकोंको सतानेवाला बन जाता है। धर्मअधर्मका यह देवासुर संग्राम आजका नहीं है । यह तो सदासे चला आ रहा है । अधर्मोपार्जित धनसे धनवान बनजानेवाले राष्ट्रके बाह्य दृष्टिसे धनवान बनजानेपर भी उस राष्ट्रकी आभ्यन्तरिक स्थितिमें राष्ट्रविप्लव के बीज वर्त -
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