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राजाकी योग्यताका प्रमाण
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विवरण- क्योंकि राजा अकेला ही समस्त प्रजाशक्तिका प्रतिनिधि होता है, इस कारण उसके अकेलेपन में समस्त प्रजाशक्ति स्वभावसे सम्मिलित रहती है। यही राजाका वास्तविक स्वरूप है ।
नास्त्यग्नेविल्यम् ॥ ८८॥ जेस आग कभी दुबल नही होती, जैसे उसका क्षुद्र भी विस्फुलिंग ईधनके संयोगसे महाग्नि बनकर विशाल वनों को फूंक डालनेका सामर्थ्य रखता है, इसीप्रकार जिन लोगोंमें राज्यश्री प्रकट होता है, वे क्षुद्रशक्ति दीखनेपर भी अपनी अन्तर्निहित संग्रथनात्मक शक्तियोंस जनताके सहयोगसे अनेक साधन पाकर प्रबल होकर अवमन्ताके लिये भयंकर बन जात है।
विवरण- इसलिये राजशक्तिको थोडा मानकर उसे केवल व्यक्तिगत रूप में देखकर उपेक्षा करना उचित नहीं है । जो राजा प्रजासे अलग अपना व्यक्तित्व रखने की भल करके अपने क्षुद्र अनुयायियोंकी संकीण शासकजाति बना लेता है, वह स्वयं ही जनताकी उपेक्षाका पात्र बनजाता है। जब तक राजा प्रजाके साथ रहता है तब तक प्रजा भी उसके साथ लगी रहती है और उसे महाशक्ति बनाये रहती है ।
( राजाकी योग्यताका प्रमाण )
दण्डे प्रतीयते वृत्तिः ॥ ८९ ॥ राजाकी वृत्ति ( अर्थात् सम्पूर्ण शासकीय योग्यता या विशे. पता) उसकी दण्डनीति ( अर्थात् उसकी प्रजापालनकी विद्या या कलामें या कला ) से प्रकट होती है। पाठान्तर-दण्डे प्रणीयते वृत्तिः।
प्रजाकी वृत्ति ( अर्थात् प्रजाको जीवनयात्रा ) दुःसाहसी लोगोंपर न्यायदण्डका प्रयोग होते रहने पर ही ठीकठीक चलती है । देश में न्यायदण्डका अभाव हो जाने पर लोगों के पारस्परिक विवादोंसे जीविकाकी हानि