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८ समता
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[ ५ ]
उपार्जन या
१- ३६. जितना प्रयत्न व परिश्रम पर द्रव्य रक्षण में किया जाता उससे कम भी यदि समताभाव के संभालने में किया जावे तो सांसारिक वैभव तो अनायोस प्राप्त होते ही हैं पर अनाकुल सुख की प्राप्ति में भी विलंब नहीं होगा |
ॐ फ
२- ३८. पर द्रव्य का आश्रय कर कुछ भी अध्यवसान कर दुखी हो लो और आगे दुखी होने के लिये कर्म बांध लो किन्तु पर द्रव्य कभी सहाय होने का नहीं । मात्र अपने समता परिणाम का विश्वास रखो । ॐ फ्र
३- ४८. तामस भाव से कलह बढ़ती और इसके विपरीत (नामस= समता ) भाव से चलने से कलह की होली हो जाती है ( कलह नष्ट हो जाता है) ।
फ्र ॐ फ्र