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[ ४६ ] ४-१०३ मनोहर ! तुझ पर ३-१४-२०-२२ वर्ष की अवस्थो में ऐसा संकट आया जो जीवन की आशा ही न थी । यदि जभी नर भव छूट जाता तो किस गति में जोकर क्या आकुलतायें करते; आयुवश यदि अभी भी जीवित हो तब विपदा, व्याधि और मरण का भय न करके समता सुधा का पान कर अमर होने का प्रयत्न करो।
. : ॐ ५-१७७. मान अपमान में, सरस नीरस आहार में, आहार
अनोहार में, लाभ अलाभ में, जीवन मरण में, संपत्ति विपत्ति में पूजक बन्धक में समता होना ही शांति व स्वाधीन सुख है। इसका प्रारम्भ भेद विज्ञान ही है।
६-२:०. पर वश नरक वेदना सहना पड़ती पर स्ववश रंच वेदना नहीं सही जाती। यदि स्ववश समतापूर्वक वेदना सहने का उत्साह आ जावे तब कल्याण कुछ भी दूर नहीं।
७-२२५.. यदि कल्पना में यह सोच लिया कि यहीं मेरी
मृत्यु का समय है तब भी समता की झलक दिखाई दे जावे।