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[ ४४ ] अन्त में तुम्हारा मान धूल में मिल जावेगा।
१३-८५४. सारा देश सन्मान करे तो भी यदि भीतर पोल है अर्थात् मिथ्या वासना है तब क्या सुखी हो जायगा ? नहीं क्योंकि सन्मान सुख का साधन नहीं, आत्मज्ञान सुख का मार्ग है।
ॐ ॐ म १४-८५५. सारा देश अपमान करे तो भी यदि आत्मज्ञान
है स्वच्छता है निजदृष्टि है तो उसका क्या बिगाड़ है ?