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[ २६ ] जिसे रागी और विरागी दोनों ही गावें ।
१००-१६५ रागी के कृत्य का यश रागी ही व उनमें खास रिश्तेदार ही गाते परन्तु वीतरागता से होने वाला यश रागी (गृहस्थों) के द्वारा व विरागी (साधुवों) के द्वारा भी गाया जाता है।
ॐ ॥ ११-२१८. ऐ दो दिन की जिन्दगी वालो ! दो दिन की जिन्दगी वालों में दो दिन तक ही स्वार्थियों द्वारा गाया जा सकने वाला यश चाह कर क्यों अज्ञानी बन कर दुखी होते हो।
ॐ ॐ ॐ ११-२४२ जिसकी कीर्ति जितने विस्तृत क्षेत्र में फैली होती है उसी पुरुष के यदि अकीर्ति का थोड़ा भी कृत्य बन जाय तो अकीर्ति उतने विस्तृत क्षेत्र में अनायास शीघ्र फैल जाती हैं, जैसे तेल की एक बूद भी सारे जल में अनायासाशीघ्र फैल जाता है।
१३-३३७. सकलत्र, ससंतान, धनी, परोपकारी, बहुप्रिय,
त्यागी, दानी, व्याख्याता आदि बनने के परिश्रम करने