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मत बनो, कोई कार्य उचित जचता हो तो उसे बतलाकर अरत बने रहा, इसमें कुछ कपट भी नहीं क्योंकि तुमने शान्ति के लिये नेष्ठिक श्रावक का व्रत लिया है।
६-६०. व्यवहार और निश्चय ये दृष्टि के भेद है चेष्टा के
येद नहीं, जहां व्यवहार हेय बताया उनका अर्थ यह नहीं कि शील, नप, व्रत, पूजा, वंदना आदि क्रिया हेय हैं . किन्तु ये चेष्टायें हो मोक्षमार्ग हैं यह दृष्टि हेय है, मोक्षमार्ग तो वीतरागभाव है पर उसके पूर्व में व्रतादि हुआ करते हैं।
७-६१. यदि कोई व्यवहार के भय से शोल, तर, व्रत, सामायिक, स्वाध्याय वंदनादि छोइने का प्रयत्न करे तब उसके कुशाल स्वच्छंदता असया आदि चेष्टायें हो जायँगी जो कि प्रकट संसार व संसार का मार्ग है ।
८-६८. व्यवहार यद्यपि निश्चय नहीं तो भी व्यवहार के
होते हुए भी निश्चय मिलता जैसे दूध से घी, यह प्राथमिक अवस्था वालों को उपाय उपेय का सम्बन्ध बताने के लिये स्थूल दृष्टान्त है ।
ॐ ॐ म