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है-जो भगवान से कुछ चाहता है उसे मिलता नहीं
और जो भगवान की भक्ति करके भी कुछ नहीं चाहता उसके चरणों में सब कुछ लोटता फिरता है।
२१-८६१. हे प्रभो ! आप देना ही चाहते हैं ता सुनो मैं
क्या चाहता हूं--मेरे कोई कभी चाह ही पैदा न हैयही चाहता हूं, क्योंकि जो मैंने चाह बताई वह आपका स्वरूप है आपके स्वरूप से बढ़कर जगत में कुछ है भी क्या ? जिसे मैं चाहूं।