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[ १५ ] उनको जाप से प्रयोजन क्या ? व वे जाप ही क्या?
और किसका करें वे तो मिथ्यात्वकलंक से कलंकित हो रहे बेचारे दुःखसागर में डूब रहे हैं।
१७-७५३. भक्त के शाप नहीं अर्थात् आत्मा के सहज
स्वरूप व परमात्मा के गुणों का ध्यानरूप सेवा करने वाले भक्त पुरुष पर किसी के क्रोध या कासने का असर नहीं होता, वह तो सबकी उपेक्षा करके अपने निष्कपटक मार्ग में विहार कर रहा है।
१८-७७८. यदि तेरे उपयोग में भगवान हैं तो तीर्थों, क्षेत्रों,
मंदिरों आदि में भी (जहां तू ढूढेगा) भगवान हैं, यदि तेरे चिन में भगवान नहीं तो कहीं भी नहीं।
4 ॐ ॐ १६-१२७. स्वयं विरागता के अंश, की व्यक्ति हुए बिना
परमात्मा का स्मरण व अवलोकन असंभव है।
२०-८६०. भगवान के गुणों में जब अनुराग बढ़ जाता है
तब भक्ति हो ही जाती है। कितना गोरखधंधा