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५६ क्षमा
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१-७४०. कोई कैसा ही कटु शब्द कहे तुम उसका उत्तर
मीठे शब्दों में हित रूप दो।।
२-७४६. अपराधी पर क्षमा ही धारण करो, बदला लेने का
ध्यान छोड़कर उसके हित की ही भावना करा, इस वृत्ति से आलौकिक आनन्द पावोगे ।
॥ ॐ ॐ ३-७८८. अच्छा-क्षमा न करो तो किसका बिगाड़ है ? क्रोध की अग्नि से नो...तुम ही अन्दर (आत्मा में) जलोगे । क्षमा से दूर क्षण भर भी न रहो।
४-८६५. क्षमावान् पुरुष स्वप्न में भी अपकारी का भी अकल्याण नहीं चाहता।
॥ ॐ ॥ ५-८६६. किसी ने अपराध भी किया हो फिर भी तत्त्वज्ञान